गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

chahat


आस जगे तो मिले जिंदगी


टूट गई चाहत है
मिली नहीं राहत है
दिल में तमन्ना है
तो मन में उमंगें होगी
डस रही है भावना को
कटी -कटी सी जिंदगी
नियति की यह क्रूर हंसी
वेदना के ज्वार जगाये
टूट गया है मेरा तन मन
मन को को भाए मिल न पाए
निराशा भी जगती क्यों है
आस जगे तो मिले जिंदगी

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज