मंगलवार, 15 मार्च 2011

himaalayi vaade iraado ke liye

बसे घर को सदा से सजाते रहे है
नंदन उपवन में बगिया लगाते रहे है
अंधरे में दीपक जला नहीं पाए
उजाले में सूरज उगाते रहे है

निर्झर का पतन गुगुनाते रहे है
मरुथल को तरसना सिखाते रहे है
उगते अंकुर को जल पिला नहीं पाए
गहरे सिंधु में सरिता बहाते रहे है

नयन में समंदर बसाए हुए है
अगन को ह्रदय में समाये हुए है
हिमालयी वादे इरादों के लिए
श्रम सीकर की सरिता बहाए हुए

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज