रविवार, 16 मार्च 2014

बिन रंग के जीवन मरा


छंद से जीवन भरा ,
आनंद से जीवन भरा 
स्नेह का यह कन्द ले लो 
सदभावना  दे दो ज़रा 

चाँदनी मधुकामनी 
अब दे रही खुशबू हमें
तुम चले  हो छोड़ कर 
मुह मोड़कर धड़कन थमे
हम बुलाये तुम  न आये
सोच कर कुछ मन डरा 

 होलिका बन जल रही है 
 दस दिशाए  छल रही है
 गल रही है भावनाए 
आशाये मन कि ढल रही है 
तुम बसे हो प्यार में ,
 विश्वास  को कर दो हरा

भाव के भावार्थ है 
परमार्थ के कई रूप है 
रंगो  से तू खेल होली 
 क्यों रहा चुप -चुप है ?
रंग से रंगीन हुआ मन 
बिन रंग के जीवन मरा

3 टिप्‍पणियां:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज