रक्त से लथ पथ हथेली ,पथ फिसलते पाँव है
श्रम सीकर से है सिंचित ,लक्ष्य की यह छाँव है
पंथ पर न चिन्ह अंकित, चहुओर बिखरी रेत है
नभ पर चिल गिध्द उमड़े, क्षितिज होता श्वेत है
प्यारा सा बचपन बचा लो ,युध्द रत हर घाव है
नियति क्यों होती है निर्मम खेलती रही खेल है
निज रक्त भी होता पिपासु ,परजीवी विष बेल है
कष्ट में रहता कौशल्य ,अकुशल के भाव है
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