गुरुवार, 29 नवंबर 2018

ठहरा मन विश्वास

गहरा गहरा जल हुआ गहरे होते रंग

ज्यो ज्यो पाई गहराई पाई नई उमंग


गहराई को पाइये गहरा चिंतन होय

उथलेपन में जो रहा मूंगा मोती खोय


गहरा ठहरा जल हुआ ठहरा मन विश्वास

ठहरी मन की आरजू पाई है नव आस


गहराई में खोज मिली गहरे उठी दीवार

गहराई न जाइये गहरी गम की मार


ऊंचाई से उतर रहे लेकर चिंतन वेद

जीवन तो समझाईये गहरे है मतभेद


मंगलवार, 13 नवंबर 2018

हलछठ

आत्मीय संसर्ग हुआ अंतर मन की प्रीत
जीवन मे आ जाओ न बन जाओ संगीत

आँचल तो आकाश हुआ जब आई हल छठ
सूरज से इस रोज मिले खिल गए है पनघट

इतना प्यारा सच्चा है सूरज तेरा प्यार
किरणों से तो रोज मिला जीवन को उपचार

निर्मल जल सी सांझ रहे बांझ रहे न कोय
दिनकर संग जो जाग रहा भाग्य उसी का होय 

पटना की है परम्परा नदियों के है तट
डूबते को भी प्यार मिला सूरज की हल छठ

गुरुवार, 8 नवंबर 2018

भैय्या दूज

बहना का भाई रहा भैय्या की है दूज
 संघर्षो से जीत मिली बहना की सूझ बूझ

जीवन में कई बार मिले सुख दुख के संजोग
बहना से मिलता रहा भैया को सहयोग

उसका निश्छल प्रेम रहा  निर्मल है अनुराग
बहना जग की रीत रही होती घर का भाग  

मिट जाते सब दुख यहाँ कट जाते सब रो
बहना के आ जाने से समृध्दि के योग

बुधवार, 7 नवंबर 2018

सज्जनता एक धन

भीतर ही अंधियार रहा  भीतर में आलोक  
जीवन पथ उद्दीप्त हुआ  बजे मंत्र और श्लोक

अनगिन तारे ताक रहे अंतहीन आकाश
चम चम चमके दीप यहाँ सुरभित मन विश्वास

हृदय में न प्यास रहे आस रहे हर नैन  
दीप्त रहे मनोकामना समृध्दि और चैन

एक ज्योति सी बांध रही  मेरा अंतर्मन
किरणों से है दीप्त धरा  विकसित है चिंतन

 मन भावो से दीप्त रहे तृप्त रहे हर जन
  दीवाली पर दीप कहे सज्जनता एक धन

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज