शनिवार, 25 अप्रैल 2020

परशुराम

धन वैभव की चाह नही ,था योगी का हठ
परशु को न बांध सका अत्याचारी शठ

अक्षय ऊर्जा साथ रहे , भगवन दो वरदान
सत का संग कर पाऊ मैं , जैसे परशु राम

दीन दुर्बल के रक्षक थे परशु धारी राम 
हे!भगवन सब कष्ट हरो , तुमको करु प्रणाम

सत्ता से वे दूर रहे , शोषित जन के साथ
शत्रु का साम्राज्य ढहा, परशु जी के हाथ

पद पैसे की चाह नही , घर जैसे हो नीड़
सत का बल ही चाहिए, नही चाहिए भीड़


सोमवार, 20 अप्रैल 2020

सूरज की पीड़ा

सूरज पूरब से उग कर यह बताता है 
रात भर सोया नही कर्तव्य याद आता है

सूरज हुआ अस्ताचल छटाएं  बिखरी है
हुई पर्वत श्रेणियां पुलकित घटाये निखरी है

शब्द भी साथ नही , भाव हुए भारी है 
अरमान के आसमा पे अब सूरज की बारी है 

घाव पाये कितने ही , दर्द बहुत झेला है
अग्नि के पथ रथ है सूरज अकेला है

हट जा रे अंधियारे पथ बहुत काला है
अग्नि में तप तप कर पाया उजाला है


रविवार, 12 अप्रैल 2020

पत्नी देवीं नमो नमः

पत्नी देवी नमो नमः हो घर की तुम ताज
तुमसे से ही सुख शांति रहे , मत हो तू नाराज़

जब से तेरा साथ मिला तन मन है गदगद
जिज्ञासा भी शांत हुई जानी खुद की हद

पत्नी के ही पाव पड़ो,पत्नी को दो भाव 
पत्नी से ही तृप्ति मिली ,पत्नी देती घाव

हर दर्पण में देख छवि होता हूँ मै धन्य
पत्नी से ही प्रीत रही ,भक्ति है अनन्य

पत्नी पथ पर साथ रहे , जीवन हो आबाद
जो उसके संग रह न सका , बिल्कुल है बर्बाद 

शनिवार, 11 अप्रैल 2020

चली वह निरन्तर खुशी पा रही है

बही जा रही है बही जा रही है 
नदी बन तरलता ,बही जा रही है 

शीतलता सरलता  उसने है पाई
छलकती हुई वह लहरा  रही है

न घबरा रही है न शर्मा रही है 
सिमटती उफनती चली जा रही है

कहा जा रही है यह पता ही नही है 
ढलानों पे हो कर वह गहरा रही है 

नही वह थकी है  नही वह रुकी है
चली वह निरंतर खुशी पा रही है

उजाले की किरण रही वह कभी तो
छवि अस्ताचल की  नज़र आ रही है

मैला जो जल है उसी का है हिस्सा
वह मानव के हाथों ठगी जा रही है 

कभी बनती रेवा तो कभी होती गंगा
वह हाथो से अस्थि कभी पा रही है 

यहाँ है वहा है  मनुजता कहा है ?
मनुज मन है मैला वह सजा पा रही है 

कभी अतिवृष्टि कभी है बवंडर 
कभी आंधियो से लड़ी जा रही है 

रविवार, 5 अप्रैल 2020

अहिंसा में बल

कोरोना यदि जीत गया ,होगी हर दम मौत
यम नियम के दीप जला , संयम की जीत होत

जप तप का बल जिसे मिला ,हो जाता वह धीर
सचमुच में योध्दा वही  ,सचमुच में शूरवीर

मत जग मे तू आग लगा, करुणा कर हर पल
महावीर और बुध्द कहे, अहिंसा में बल

महावीर तो चले गए ,देकर यह उपदेश 
संतोषी ही सुखी रहे ,सज्जन को न क्लेश

फैला दे आलोक

तू अपने घर दीप जला,फैला दे आलोक
हट जाए संत्रास सभी , मिट जायेगा शोक
जीवन का रस कहा गया, कहा गया आनंद
दीपक हर पल देत रहा ,महकी महकी गंध
टिम टिम करता दमक रहा ,तारो से आकाश
एक दीपक जल देत रहा तन मन को विश्वास

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

प्रीत और सौंदर्य पर थे वे लगाते बोलीया 
सामने संवेदना के शत्रुओ की टोलिया 
असहाय हो गए थे छल धन बल के समक्ष 
प्रीत के क्या ? प्राण लेगी ये रिवॉल्वर गोलिया 

धन की चाह में फैलाई याचको ने झोलिया 
मन की आहों  ने उठाई अर्थिया और डोलिया 
भीड़ में ही खो गई थी आत्मीयता कही 
अपने लोगो ने जलाई अरमानो की होलिया 

आकाश के उस छोर से है उठती आशा किरण 
हुई आग सी  संकल्पना  बढ़ते  गए उसके चरण 
वह तोड़ती है वर्जना चित्रित हुई हर सर्जना 
लो आ  गई तम  चीरकर हुआ चेतना का संचरण 
 



 

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

कह गये नमस्कार

जीवन सारा बदल गया ,बदल गया व्यवहार
राम राम तो कहा नही ,कह गये  नमस्कार
जन जन रहते राम यहाँ, दीन हृदय श्रीराम 
शबरी केवट धाम गये ,राम कर्म निष्काम
आई जब नव रात नई,  हो गए पावन क्षैत्र
कोरोना का रोग मिटे , तिमिर  हटे इस चैत्र
निज हृदय सदभावना , सौम्य हृदय श्रीराम
जन जन तन मन स्वस्थ रहे, सुख के पाये धाम
मर्यादित हो आचरण ,पुरुषोत्तम श्रीराम 
भक्ति निश्छल बनी रहे , शक्ति का सम्मान

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज