शनिवार, 22 अगस्त 2020

गिरधर और गोपाल

रिश्ते उतने साथ रहे जितने थे सम्बन्ध
मन से मन को बांध रहे स्नेहिल से अनुबंध

क्या होता है पुण्य यहाँ क्या होता है पाप
पापी था जो डूब गया मर गया अपने आप

गिर कर उठता चला गया रहा सदा सक्रिय
उसका ही है भाग्य जगा रहा सभी का प्रिय

चिड़िया भी है चहक रही चहकी हर चौपाल
बरगद पीपल छाँव पले गिरधर और गोपाल

बिखरी जाती रेत रही सूने सूने तट
उखड़े कितने वृक्ष यहां सजते है मरघट


गुरुवार, 20 अगस्त 2020

श्रम का अमृत

पौरुष से है भाग्य जगा नियति भी है बाध्य 
मंजिल कोई दूर नही सब कुछ है श्रम साध्य

जीवन कड़वा नीम नही मीठा है इक फल
मीठी मीठी बात करो मिल जायेंगे हल

श्रम से सारे काज हुए होता क्यो ?नाराज 
श्रम से सब कुछ पायेगा मत करना तू लाज

श्रम का ही तो मूल्य रहा ,बिन श्रम सब बेकार
आलस कर जो भाग रहा, कर्मो से मक्कार

उसका कोई मोल नही जो करता खट पट
झट पट जिसने काम किया होता वो कर्मठ

श्रम साधे है काज सभी जीवन का है मूल
श्रम का अमृत बाँट लिया देवो ने मिल जुल



रविवार, 2 अगस्त 2020

माँ

माँ कंचन सी रूप रही ,माता उजली धूप
माँ आंसू को पोंछ रही, दुख सहती चुप चुप

माता सुख की छांव रही ,हर लेती सब दुख
माँ करती उपवास रही ,ली बेटे की भूख

माँ तो हरदम साथ रहे ,माँ देती सम्बल 
माँ नदिया बन नीर बहे ,माँ यमुना चम्बल

माता होती रात रही ,होती गहरी नींद
दूब को देती ओंस नई ,जल को दे अरविंद
 
माँ बेटे को प्यार करे ,होकर के वत्सल 
गौमाता भी चाट रही, बछड़े को पल पल

 माँ पत्ते और पेड़ रही ,माँ होती फल फूल 
माँ टहनी पर नीड़ रही ,चिड़ियों का स्कूल 

माँ का सपना टूट गया ,उठ गया विश्वास 
जब बेटे के हाथ पीटी ,झेली है भूख प्यास

राम उसी के होय

राम राम तो सब कहे राम रहे न कोय
जो बन कर के राम रहे राम उसी के होय

राम नाम सत शब्द रहा राम रहे सत्कर्म 
राम रहे निज आचरण राम रहे है धर्म

बसे राम हनुमान हृदय राम बसे हर जीव 
निकट राम लक्ष्मण रहे राम सखा सुग्रीव

राम सत्य संकल्प रहे राम रहे हर आस
रामायण जी यह कहे राम रहे विश्वास

जहा राम वहां स्नेह रहा प्यारा सा है गेह
बारिश से है भींग रही राम कृपा से देह

राम प्रखर पुरुषार्थ रहे राम रहे आराध्य 
साधक जीवन सुखी रहा पाया जो भी साध्य 

जिनके भीतर अहम नही उनके भीतर राम 
सहज सरल और तरल नयन मर्यादा के धाम


न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज