बुधवार, 16 सितंबर 2020

पितरो का परलोक रहा

दादी का जिन्हें प्यार मिला दादा की दुत्कार 
सचमुच जीवन पाया है पाये है अधिकार

पूर्वजो का साथ मिला पाई सूझ बूझ सीख
नन्ही गुड़िया नाच रही किलकारी और चीख

कितने सारे फूल गिरे पग पग बरसा नभ
माँ के पग आशीष रहा जीवन है जगमग 

कितनी पावन रीत रही कितना प्यारा भव
पितरो का यह श्राध्द रहा श्रध्दा का उत्सव

अपने थे जो चले गए इस भव के उस पार 
पितरो का परलोक रहा सपनो का संसार

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज