शनिवार, 21 जून 2014

बदले मन के भाव है

फूल बिखेरे गुलमोहर ने  , गर्म हो रही छाव है 
 ताप दे रही है दोपहरिया , भींग रहे सिर पाँव है 

रस्ते टेड़े  बदहाली के ,पथ पर उड़ती धूल  है 
मानसून में होती  देरी ,शायद हो गई भूल है
जल बिन जीवन कब होता है निर्जन होते गाँव है 

लौट रही न अब यह गर्मी ,सूखा थल से जल है
आज कटे है सुन्दर उपवन ,
नष्ट हो रहा कल है
हे ! बादल तुम क्यों है बदले? बदले मन के भाव है 

सूख गए है घट, तट, पनघट ,रिक्त हुए सब कुण्ड है 
जल बूंदो को तरसे खग दल ,भटक रहे चहु झुण्ड है 
कोयलिया फिर भी है बोली ,कौए  करते कांव  है

 
 
 




 

शुक्रवार, 20 जून 2014

पेड़ और पिता

पेड़ और पिता में क्या अंतर है ?
पेड़ भी पिता के समान छाया देता है 
पेड़ की टहनियों पर पंछी आकर थकान मिटाते है 
पिता के पास पुत्र आश्रय पाकर  अरमान सजाते है 
सरंक्षण पाकर अभय दान पाते है 
पेड़ की जड़े  बहुत गहरी होती है 
पिता की सोच अनुभव से भरी होती है 
पेड़ से पंछी और मानव मीठे फल पाते है 
गिरने वाली लकडियो से हम भोजन पकाते है 
पेड़ की छाया  देखते ही आशाये जग मगाती है 
पसीने से लथ -पथ नाजुक सी देह राहत पाती है 
इसलिए पिता भी पेड़ के बीच कोई अंतर नहीं है 
पेड़ और पिता दोनों हमारे पूज्य है 
फिर भी हम दोनों के अस्तित्व को मिटाने पर क्यों तुले है 
हुई ढीली  संस्कारो की जड़े और वृध्दाश्रम क्यों खुले है 

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज