शनिवार, 29 सितंबर 2012

क्रांती जन सम्वाद है

क्रांति मे रहते भगत सिंग ,क्रांति होती आग है
क्रांति मे होते उधम सिंग,जलियावाला बाग है
क्रांति मे होती अमरता,क्रांति मे होता समर था
क्रांतिकारी की हो पूजा , क्रांति बदले भाग है

क्रांति से भ्रांति मिटे है निकले घर से नाग है
माटी पर जो मर मिटा है,मिट्टी से अनुराग है
क्रांति से मिटती है खाई,क्रांति ने गरिमा लौटाई
क्रांति के आव्हान से ही, होते हम आजाद  है

क्रांति से कल तू जिया था,मुक्ति का यह नाद है
क्रांती की होती चिंगारी ,क्रांती का चिराग है
क्रान्ति ने बाँधी शिखा है क्रान्ति से जीना सीखा है
क्रान्तिया होती रहेगी ,क्रांती जन सम्वाद है

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

क्रांति

क्रांति में रहते भगत सिंग ,क्रांति होती आग है
क्रांति होते उधम सिंग ,क्रांति से आजाद है
क्रांति में तो अमरता है ,क्रांति से सब संवरता है
क्रांति में है रागिनिया ,क्रान्ति ही युग राग है

क्रांति में दीवानगी है ,क्रान्ति में है जिंदगी
क्रांतिया भ्रान्ति को तोड़े ,भ्रान्ति में शर्मिंदगी
क्रांति होती चेतना है स्वदेश की संवेदना है
क्रांतिया जब हुई है ,मद मस्त होती बंदगी

क्रांति का ही राग छेड़ो,क्रांति का फूंको बिगुल
भ्रान्ति में मतिभ्रम रहता ,नीति होती ढुलमुल
क्रान्ति से मुक्ति मिली है मुक्ति से शक्ति खिली है
क्रांतिया चिंतन में रहती ,क्रांति करती अनुकूल 






मंगलवार, 25 सितंबर 2012

तन्द्रा को तोड़ो

जटिलता को  तोड़ो
कुटिलता को छोड़ो
सरलता सहजता से
कभी मुख न मोड़ो

हरा हो भरा हो
नही मन मरा हो
करूणा हो मन मे
दया से भरा हो
तोड़ो  न जोड़ो
मूच्र्छा को तोड़ो
चवन्नी अठन्नी से
पा लो करोड़ो

दुखी हो सुखी हो
नही बेरूखी हो
नही मन मे तृष्णा 
नही अधोमुखी हो
तन्द्रा को तोड़ो
उठो जागो दौड़ो
हालात हाथ 
नहीं खुद को  छोड़ो


मंगलवार, 18 सितंबर 2012

बिंदी कुंकुम से गौरी

भारतीय भाषाओं में ,सब कुछ है संभव
हिंदी मन का भाव है ,हिंदी है अनुभव 

हिंदी में आश्रय मिले ,कविता अश्रुमय
हिंदी में सब छंद मिले ,छंदों में चिन्मय 

हिंदी में ही देश रहा ,हिंदी में परिवेश
बिंदी कुंकुम से गौरी ,बदला चाहे वेश


ह्रदय में जय हिंद रहा ,रहा हिंद अरविन्द
हिंदी तुलसी जायसी ,हिंदी में गोविन्द 

बुधवार, 12 सितंबर 2012

वे अकड़े है तने है

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मधुर मनोहर अनुभुतियो का पडा अकाल है
कटु और कठोर अनुभुतिया बेमिशाल है
अहंकार के विकार से वे अकड़े है तने है
ओढ़ कर छद्म आवरण कुछ और  ही बने है
काले कारनामो की खुली पोल उन्हे मलाल है
हुई दुर्व्यवस्थाये,सुव्यवस्था हुई अब बौनी है
बन्द और  हडताल से महंगाई हुई चौगुनी है
फुल गये हाथ पैर जब हालात हुये विकराल है
पक्ष विपक्ष खैलते रहे यहाँ आँख  मिचौनी है
स्थगित रही बैठके अब चर्चाये कहा होनी है
हुडदंग हंगामो के बीच होता रहा धमाल है
बडबोले  अनियंत्रित बोल आजकल  वे बोले है
कूपमन्डूक मानसिकता के भेद जिव्हा ने खोले है
वाकपटुता पर केन्द्रित राजनैतिक इन्द्रजाल है

महंगी पड़ी मूकता है


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स्नेह कहा रुकता है भेद कहा छुपता है
महंगी पडी होशियारी ,महंगी पडी मूकता है

कोलाहल गति  को प्रगति को रोकता है 
अकैला एकांत में मन ही मन सोचता है
छुपाये नही छुपी मानसिकता कुरुपता है

मन ही मन कुढ़ते है ,भाव कहा जुडते है
सॅकरी हुई है गलिया ,फुटपाथ सिकुडते है
कायराना आचरण है पलायन  विमुखता है

सोमवार, 10 सितंबर 2012

मुक्ति के ही फूल झरे है

दे रहे शुभकामनाये
शुभकामनाओं  से डरे है
षडयंत्र है दुर्भावनाये
जख्म होते अब हरे है

झुठी है सम्वेदनाये
वेदना लगती सही है
वर्जनाओं की दिवारे
वंचनाओं की बही है
प्रीती को लुटते लुटेरे
झुठ से किस्से भरे है

मैला मन है मैला आँचल
मैले मे मन तू चला चल
भोले मन अब तक छला है
छोड जग तू चल हिमाचल
मंजिले पुकारती है
मुक्ति के ही फूल झरे है

शनिवार, 8 सितंबर 2012

आकलन भी गलत ठहरे

आँखों में भरे आंसू ,बिखरे हुए सपने है
परायापन छाया है ,कौन यहाँ अपने है
आशाओं का आँचल ,बिछड़ गई छाया है
फिर हमें चलना है ,स्वाद कई चखने है

समय की कसौटी पर खरा कौन उतरा है
स्वार्थ से भरे रिश्तो ,रिश्तो पे खतरा है
इतना सब सहना है फिर भी यहाँ रहना है
पैतरे पर पैतरा है जीवन हुआ कतरा है

शब्द तो वही रहे, उनके कई आशय  है
भावो के कई रूप ,दुराशय सदाशय है
बिगडी हुई दशाये है,बहकी हुई दिशाये है
आकलन भी गलत ठहरे उखड़े महाशय है

बदरिया बारिश की कैसी यहाँ बहकी है
मनोरम हुआ  मौसम ,बगिया भी महकी है
झरते हुये झरने है,सरोवर जो भरने है
शीतलता छाई है,निर्मलता चहकी है

सुगन्ध मे विस्तार है

रूप मे सौन्दर्य है रंग रूप मे संसार है
स्पर्श मे आनंद  है ,आनंद  अपरम्पार है
गन्ध मे अनुभूतिया है,सुगन्ध मे विस्तार है
है रस भी रहस्यपूर्ण ,रस रंग की बौछार है

सादगी मे ताजगी है ताजगी मे जिन्दगी
दोस्ती की राह देती,दोस्ती और  बन्दगी
दोस्ती विश्वास है,विश्वास ही संसार है
जख्म दे न दोस्तो को दोस्ती दे जिन्दगी


व्यक्ति मे है मान रहता,अभिव्यक्त स्वाभिमान है
व्यक्तित्व मे निहीत रहे गुण,गुणवान ही इन्सान है
चरित्र की परिपूर्णता ही ,ज्ञान की सम्पूर्णता है  
चरित्र से परिपूर्ण ज्ञानी, गणमान्य है विद्वान है

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

वादे मे यादे थी,यादो मे दम था

गैरो के गम मे अपना भी गम था
सन्नाटे थे पसरे ,पसरा मातम था
पाया न ज्यादा था ,थोड़ा सा वादा था
वादे मे यादे थी,यादो मे दम था

अपने ही गम मे तो रोता है कोई
गैरो गम मे नही आँखे भिंगोई
संवेदना मानव की ऐसी है सोई
झुठी थी हमदर्दी कश्ती डुबोई

बिवाईया पैरो मे दिल मे पडे छाले है
खूबसूरत चेहरे भी भीतर से काले है
कालिमा चेहरो की,भीतर तक गहराई
मिट्टी के माधो के सब कुछ हवाले है

शनिवार, 1 सितंबर 2012

कृष्ण सा चितचोर है

हर तरफ चिंगारिया है,होता रहा चहु शोर है
प्रश्नो का रहता हिमालय, कही ओर है न छोर है

सीने मे है दिल धडकते दिल पर नही अब जोर है
अब घुमडती आंधिया है चलता मचलता दौर है

जय विजय मिलती रही है, मिलती नहीं कही ठोर है
माया ममता का धरातल हर पल फिसलती डोर है

छल रहे मन और मनुज, छल से भरी हर भोर है
रोता बिलखता बालपन ,देता नही मुख कोर है

नैपथ्य में असली कहानी ,मंच पर कुछ और है
ले गया सुख चैन मन का , कृष्ण सा चितचोर है
 

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज