सोमवार, 17 दिसंबर 2012

विश्वास की पदचाप है


फूल है गुलकन्द है 
गुलकन्द जैसे आप है
ह्रदय मे आनंद है 
आनंद ही तो आप है
स्नेह मे निश्छल है
 निर्मल है निष्पाप है
प्रतिमूर्ति है सौन्दर्य की
 विश्वास की पदचाप है

रिश्ते रुहानी हो गये है आजकल
सपने सुहाने हो गये है आजकल
दिल मे बसी है आपकी सुन्दर छवि
पल पल रूलाती याद भी है आजकल

चिंगारिया थी पल रही






जिन्दगी बिन उमंगो के बीती चली जाती है
मौत तो दबे पाँव चुप-चाप चली आती  है
हम तो हालात की मुंडेर पर रखे हुये दिये है
 हवाये सच्चाई की लौ को ही क्यो बुझाती है ?


ढेरो थी मुश्किले ,मुश्किलो से घिरा इन्सान था
सीधा सच्चा था आदमी नही कोई शैतान था
दिल मे थी चिंगारीया ,चिंगारिया थी पल रही
सपनो मे लगी आग थी,घर भी उसका वीरान था

पसरा हुआ पाखंड है खोंखले ढकोसले है
लोग बाहर से कुछ ओर भीतर से दोगले है
आदर्शो की बाते करना अब हो गई फैशन
बड़ी-बड़ी बाते बड़े -बड़े लोगो के चोंचले है





शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

विश्वास होते रहे क्यो सशंकित है ?


याद तुम्हारी अाई हम क्या करे ?
या तो मर मिटे या जमाने से डरे
जबान कुछ बोलने से है डर रही
चाहत सागर सी है इस दिल मे भरे

सीने मे है अाग अौर उफनता लहू
कठिनाईया अनगिनत है किससे कहू
या तो चुप रहू अौर चुप-चाप सब सहू
धोखे अौर विश्वासघात से बहता है लहू




अास्थाये होती रही क्यो कलंकित है ?
विश्वास होते रहे क्यो सशंकित है ?
चाह कर भी हम अापको भूल नही पाते
मेरे दिल रही छवि अापकी अंकित है

अाज प्यारा सा गीत गाया है
प्यार पुराना समीप अाया है
बन गई जिन्दगी पहेलीनुमा
प्यार पाकर इसे सुलझाया है

क्या भरोसे के लायक कोई अादमी है ?

जिन्दगी के हालात बहुत हुये विचित्र है
दुश्मनो के रूप मे लगते यहा पर मित्र है
हम जो समझे है जहाॅ तक अापको
रेशमी रूमाल मे लिपटा हुअा एक इत्र है

अाॅखो से अाॅसुअो की झडी अाज भी कायम है
स्म्रतिया अापकी कितनी कोमल है मुलायम है
जीवन मे हालात चाहे कितने भी बदल जाये
अाप से होगी सुबह अाप ही पर होगी सायं है


ठिठुरता अासमान अौर ठिठुरती जमीं है
अाज मौसम मे छाई हुई कुछ नमी है
बैचेन हुई भावनाये,अौर निकल गये अाॅसू
क्या भरोसे के लायक कोई अादमी है ?

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

दर्द मे भींगा






दर्द मे भींगा हुआ है
सर्दिला मौसम
सर्द का मौसम हुआ है
सर्द का मौसम

झील के झिल-मिल किनारे
लहरो की हल चल
लहरो की हल-चल हिलाती
ठंडी हवा पल पल
प्यारा सा जीवन सजा ले
ऐ मेरे हम-दम


दर्द से घायल हुई है
प्यार की पायल
प्यार मे पागल समन्दर
पागल हुई कोयल
साज और  आवाज से ही
सज गई सरगम


शनिवार, 8 दिसंबर 2012

बहुत कुछ पाया है



आंसुओ की झील मे दिखा दर्द का साया है
रोशनिया झिल-मिलाई-चाँद उग आया है
जीवन मे कुछ खोया बहुत कुछ पाया है
आसमान आस्था का सजाया है पाया है

झील सी झील-मिलाई आँखों मे आशाये
खिल-खिलाई होठो पर प्यार की भाषाये
मंजिले मिल गई जब ख्यालो मे तुम आये
मिली खुशियो खुश्बू ,खुश्बू पल महकाये

निराशा के भीतर भी आशायेहोती है
जीवन की मस्ती को आशा संजोती है
आशाये सावन है आशाये मधुबन है
आशादम पर ही ज्योति है मोती है

 

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

सस्ते थे दिन

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सस्ते जमााने मे
सस्ते थे दिन
गाॅवो की पगडंडी
पगडंडी रंगीन

सावन न तरसा था
अासमान बरसा था
हल थे अौर बक्खर थे
हाथो मे फरसा था
भक्तो के कीर्तन थे,
सब कीर्तन तल्लीन

घने घने थे साये 
स्नेहिल पल थे पाये
लौरी अौर किस्से थे,
किस्से थे अपनाये
दादी की अाॅखो मे
अाॅसू थे गमगीन


बुधवार, 28 नवंबर 2012

वेद की भुले ॠचाये


रिश्ते भी तो रिस रहे है ,
रिक्त होते जा रहे है
गिद्ध नोंचे है घ्रणा के ,
घाव भी गहरा रहे है

बढ रही है खाईया है
सम्वाद सेतु ढा रहे है
स्वर ठहरे द्वेष के ही
सदभाव घटते जा रहे है
वे अा रहे कही जा रहे
उर स्पर्श न कर पा रहे है
निष्ठुरता रहती ह्रदय मे
ह्रदय को तरसा रहे है

दूरिया बढती परस्पर
परछाई बन पछता रहे है
हर तरफ रूसवाईया है
रूबाईयो को गा रहे है
    वेद की भुले चाये
    अब वे नचाये जा रहे है
इतरा रहे गीत गा रहे
घट छलछलाते जा रहे है

ज्ञेय अौर अज्ञेय हेतु
से सताये जा रहे है
मूल्य बढते है अकारण
कारण गिनाये जा रहे है
तंत्र मारण अौर जारण
से निवारण पा रहे है
धर्म धारण कर रहे है
कर्म से घबरा रहे है

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

भावो का दीप


रूप तेरा अाज है, कल ढल जायेगा
तेरी मुठ्ठि से पल पल ,फिसल जायेगा
तू कंचन काया को ,सम्हाल कर रखना
अाईना तेरे रूप को ,निगल जायेगा

दुर्भाग्य की लकीरे ,बहुतेरो को रुलाती है
कर्म की दीपिका, सौभाग्य को बुलाती है
हे!मनुज परमार्थ कर ,निस्वार्थ से पुरुषार्थ कर
पुरुषार्थ से तकदीरे है ,प्रारब्ध को हिलाती है

रूप दीप शिखा मे ,जल जाता परवाना है
प्रीत की दीप्ति मे ,मिट जाता दिवाना है
भावो का दीप ,सबसे समीप होता है
भावनाअो से जुडा, परवाना है दिवाना है

बुधवार, 21 नवंबर 2012

स्नेह


स्नेह जब ममत्व का रूप धारण करता है
तो ममता कहलाता है
स्नेह जब दया अौर अार्द्रता सौहार्द्रता का रूप धारण करता है
तो करूणा कहलाता है
स्नेह को जब पित्रत्व का अाकाश मिलता है
तो अाश्रयदाता बन जाता है
स्नेह को जब सम्वेदना का अाभास मिलता है
तो गीत गजल साहित्यिक अाचार कालजयी विचार बन जाता है
स्नेह किसी अजनबी से हो जाता है तो प्रीत प्यार बन जाता है
ऐेसे प्रेम से व्यक्तित्व का निखार पा जाता है
राधा से श्रीक्रष्ण से स्नेह अध्यात्मिक ऊॅचाईया पा जाता है
माता के स्नेहिल स्पर्श पाकर शिशु अाहार दुलार पा जाता है
पिता का स्नेहाशीष पाकर पुत्र सारा संसार पा जाता है
बुजुर्गो की स्नेहिल स्पर्श की हौसलो को उडान प्रदान करता है
इसलिये स्नेह के अलग -अलग भाव है
स्नेह सिर्फ स्नेह नही अात्मा का अात्मा से लगाव है
स्नेह शून्य जीवन मे अभाव ही अभाव है
जहाॅ स्नेह है वहा समभाव है
स्नेह विहीन समबन्धो रहता नही सदभाव है
स्नेह के कई रूप है स्नेह की कही छाॅव है तो कही धूप है
स्नेह कही बोलता है तो कानो मे मिश्री घोलता है
स्नेह कही चुप -चुप रहता है
संकेतो अौर अनुभूतियो अाॅखो से साॅसो से बोलता है
मौन स्नेह के की भाषा अनोखी है
स्नेहिल स्पन्दन की सरिता क्यो सूखी है







रविवार, 11 नवंबर 2012

खिले रूप बन चाँद

रोशन मत कर रोशनी ,रोशन कर दे तम
दीप पर्व दीपावली ,मन का  हर ले गम

हाथ पैर है फ़ूल रहे ,फ़ूल रहे है गाल
काया भी निर्लज्ज हुई ,नग्न देह विकराल

भावो की भावांजलि ,मन मोहता तव रूप
खिली -खिली हो चांदनी ,खिली -खिली हो धूप

रूप चौदस में रूप भरा ,खिले रूप बन चाँद
यम -नियम से रूप सजा ,संयम के बन्ध बाँध

 

दीप पर्व है देत रहा,तन-मन मे उल्लास
चिंतन पावन बना रहे ,जीवन हो मधुमास

नारायण की क्रपा रहे ,लक्ष्मी का वरदान
सदा करु माॅ शारदे,तेरा ही गुणगान
​​​​​​​​​​​

दीवाली पर दीप कहे

दीपो में है दीप रहे ,मोती रहते सीप
दीवाली पर दीप कहे ,मन का आँगन लीप

रंगों की रंगावली , रंग बिरंगे दिन
दीपो की दीपावली ,नभ तारे अनगिन

तारे प्यारे चमक रहे ,चमकी हर दीवार
दीपो से हुई दीप्त धरा ,तिमिर हटा हर बार

नेह तरल में दीप जले ,बिखरी स्नेहिल गंध
सत्य सनातन बने रहे ,रचे गद्य और छंद

रिश्तो का इतिहास रहा ,रिश्तो का भूगोल
रिश्तो में मधुमास रहा ,रिश्ते है अनमोल

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

प्रवाह

प्रवाह गति का द्योतक है
प्रवाह का उज्जवल भावी है 

वर्तमान रोचक है
प्रवाह जल जीवन और पवन ने पाया है
प्रवाहित होकर जल नदिया और निर्झर बन पाया है
प्रवाहित जल में विद्युत ऊर्जा समाई है
वैचारिक प्रवाह ने ही अलख चिंतन की जगाई है
प्रवाह ही तो जीवन को नवीन दिशा दे पाता है
गहन निशा की उदासी में उल्लास का शशि जग -मगाता है
तरुणाई की ताकत और अनुभव ज्ञान भी प्रवाहित होते है
प्रवाहित जीवन को दिशा देकर बीज रचना के बोते है
दिशाए हमारे जीवन की दशा बदलती है
सही दिशा पाकर ही तो जिंदगी सम्हलती है
प्रवाह में जिंदगी पलती है
ज्योत आशा की जलती है
अभिलाषा की कलि विचारों के उपवन में खिलती है
इसलिए प्रवाह को प्रवाहित होने दो अपनी गति से
प्रवाह की सार्थकता है उत्त्थान और उन्नति से
प्रवाह से से मिलेगे सभी को हल
प्रवाह से प्रसारित होंगे पखेरू 

फैलायेगे पंख सजायेगे कल
प्रवाहित जल से है सिंचित भूमि 

लहलहाया मरुथल
प्रवाह चेतना का भाव है
जड़ता के घने वन  में सक्रियता का गाँव है

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

रावण के है पीठ


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राम शब्द मे ब्रह्म रमे,रामायण हरि धाम
हनुमद अमृत दीजिये,जपे राम का नाम ।।१।।

रावण बावन फीट हुआ ,हुई व्यवस्था ढीठ
राम राज तो नही मिला,रावण के है पीठ।।२।

मेघनाद सा पुत्र कहाँ ,कहाँ  सिय सा प्रण
रावण को भी मिले यहाँ  ,राम क्रपा के क्षण ।।३।।

अनुचर तो सब विचर रहे,लुप्त समर्पण भाव
कलपुर्जो का युग रहा,कलयुग के है गाँव ।।४।।

धरती भी बेहाल हुई,यह दंगो का खैल
संग रावण के जले यहाँ ,जल जंगल और रेल।।५।।

सीता सी मन आस रही,साँस  बसे रघुवीर
रहे लक्ष्य भी लक्ष्मण सा,तो जगती तकदीर ।।६।।

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

कृष्ण कृपा मन राखिये



वचन व्यक्त विश्वास है,वचन रहा है न्यास
        दुष्ट वचन दुख देत रहा,सत्य वचन मे व्यास      ||1||

वचन वाक्य विन्यास नही,वचन कर्म है धर्म
          तृप्त  हुआ वचनाम्रत से ,साधक कर सत्कर्म      ||2||

वचन पुरुष श्रीराम रहे ,वचन वीर घनश्याम
         बच नही पाया दुर्वचनो से,प्यारा सा इन्सान       ||3||

सद वचनों में गुण भरा ,प्रवचन सुख नवनीत
        सन्त ह्रदय सा राखिये,रख मन घट मे प्रीत   ||4||

कृष्णा  की जो लाज रखे ,कृष्ण वचन सा होय
         कृष्ण कृपा मन राखिये , कृष्ण वचन को ढोय    ||5||

वचन विराजे ब्रह्म देव ,वचन विराजे राम
      वचनो पर जो प्राण तजे ,राम पिता गये धाम      ||6||




रविवार, 7 अक्तूबर 2012

आत्मीयता

आत्मीयता की उड़ान ऊँची उड़ान है
आत्मीयता में आत्मा का रसास्वादन है
कान्हा की प्रीत, राधा का स्नेह
नील कंठ का विषपान है
आत्मीयता में आत्मा का वंदन है
मोह के माथे पर नेह का चन्दन है
आत्मा का परमात्मा से स्नेहिल बंधन है
आत्मीयता जहां होती है
वहा स्वादिष्ट लगती सूखी रोटी है
आत्मीयता के बिना भावो  की तृप्ति कहा होती है
आत्मीयता शबरी के झूठे बैर है
कान्हा के सम्मुख कैलो के छिलको में
विदुर सवा सेर है
आत्मीयता निराशा में जीवन की आशा है
आत्मज्ञान है सच्चे ज्ञान की पिपासा है
प्रियतम से मिलने से मिलने की उत्कट अभिलाषा है
इसलिए जिसे भी चाहो उसे आत्मा में बसाओ
आत्मा को आत्मा के करीब ले आओ
असंख्य आत्माओं का समूह ही तो होता परमात्मा है
कोटि कर्मो के बंधन से ही निकलती जीवात्मा है
आत्मीयता की स्थापना से  ही तो सिध्दी होती है
आत्मीय संबंधो की कीर्ति और प्रसिध्दी होती है
जीवन में सिध्दी और प्रसिध्दी का होना अनिवार्य है
आत्मीयता बनाए रखे
आत्मीय सम्बन्ध स्वीकार्य है 

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

मरी हुई चेतना हवा हुई खिलाफ है

उमंग मे जीवन है,तरंग मे जीवन है
रसो मे जीवन है,नसो मे जीवन है

काया मे छाया है,छाया मे माया है
माया से पाया है,प्यारा गीत गाया है
तपन है थकन है गीतों की छूअन है 

कही कही सुख है यथार्थ कुरूप है
नया नया रूप है हुई छाँव धूप है
अगन है दहन है थमी हुई पवन है

विरह है मिलाप है रुदन है विलाप है
मरी हुई चेतना हवा हुई खिलाफ है
दमन है नमन है लुटा हुआ चमन है



शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

भाव करे मन से सत्कार

शर्म भरी गालो की लाली
मीठी गाली मीठा प्यार
सज नही पाया बिन सजना के
सजनी का कोमल श्रंगार

होठो पर मुस्कान रहे तो
पलको पर ठहरा हो प्यार
गहरे बालो मे बिखरा है
मादक,मस्ती का विस्तार
सोच रही तन-मन यह धडकन
मिलने के कब हो आसार

धवल चाँदनी  चन्दा देखे
नवल तृषा देखे उस पार
निशा तो नित ही है होना
कमल चन्द्रमा ले आकार
पायलिया की रून-झुन सुन कर
  गूंज उठी मन मे झंकार

बादल से बरसे है नयना
तरस रहे मन के सुख चैना
सरिता तट केवट आ पहुचा,
जल बिन नैया कैसे बहना
उतर रही है भावो की टोली,
भाव करे मन से सत्कार

शनिवार, 29 सितंबर 2012

क्रांती जन सम्वाद है

क्रांति मे रहते भगत सिंग ,क्रांति होती आग है
क्रांति मे होते उधम सिंग,जलियावाला बाग है
क्रांति मे होती अमरता,क्रांति मे होता समर था
क्रांतिकारी की हो पूजा , क्रांति बदले भाग है

क्रांति से भ्रांति मिटे है निकले घर से नाग है
माटी पर जो मर मिटा है,मिट्टी से अनुराग है
क्रांति से मिटती है खाई,क्रांति ने गरिमा लौटाई
क्रांति के आव्हान से ही, होते हम आजाद  है

क्रांति से कल तू जिया था,मुक्ति का यह नाद है
क्रांती की होती चिंगारी ,क्रांती का चिराग है
क्रान्ति ने बाँधी शिखा है क्रान्ति से जीना सीखा है
क्रान्तिया होती रहेगी ,क्रांती जन सम्वाद है

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

क्रांति

क्रांति में रहते भगत सिंग ,क्रांति होती आग है
क्रांति होते उधम सिंग ,क्रांति से आजाद है
क्रांति में तो अमरता है ,क्रांति से सब संवरता है
क्रांति में है रागिनिया ,क्रान्ति ही युग राग है

क्रांति में दीवानगी है ,क्रान्ति में है जिंदगी
क्रांतिया भ्रान्ति को तोड़े ,भ्रान्ति में शर्मिंदगी
क्रांति होती चेतना है स्वदेश की संवेदना है
क्रांतिया जब हुई है ,मद मस्त होती बंदगी

क्रांति का ही राग छेड़ो,क्रांति का फूंको बिगुल
भ्रान्ति में मतिभ्रम रहता ,नीति होती ढुलमुल
क्रान्ति से मुक्ति मिली है मुक्ति से शक्ति खिली है
क्रांतिया चिंतन में रहती ,क्रांति करती अनुकूल 






मंगलवार, 25 सितंबर 2012

तन्द्रा को तोड़ो

जटिलता को  तोड़ो
कुटिलता को छोड़ो
सरलता सहजता से
कभी मुख न मोड़ो

हरा हो भरा हो
नही मन मरा हो
करूणा हो मन मे
दया से भरा हो
तोड़ो  न जोड़ो
मूच्र्छा को तोड़ो
चवन्नी अठन्नी से
पा लो करोड़ो

दुखी हो सुखी हो
नही बेरूखी हो
नही मन मे तृष्णा 
नही अधोमुखी हो
तन्द्रा को तोड़ो
उठो जागो दौड़ो
हालात हाथ 
नहीं खुद को  छोड़ो


मंगलवार, 18 सितंबर 2012

बिंदी कुंकुम से गौरी

भारतीय भाषाओं में ,सब कुछ है संभव
हिंदी मन का भाव है ,हिंदी है अनुभव 

हिंदी में आश्रय मिले ,कविता अश्रुमय
हिंदी में सब छंद मिले ,छंदों में चिन्मय 

हिंदी में ही देश रहा ,हिंदी में परिवेश
बिंदी कुंकुम से गौरी ,बदला चाहे वेश


ह्रदय में जय हिंद रहा ,रहा हिंद अरविन्द
हिंदी तुलसी जायसी ,हिंदी में गोविन्द 

बुधवार, 12 सितंबर 2012

वे अकड़े है तने है

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मधुर मनोहर अनुभुतियो का पडा अकाल है
कटु और कठोर अनुभुतिया बेमिशाल है
अहंकार के विकार से वे अकड़े है तने है
ओढ़ कर छद्म आवरण कुछ और  ही बने है
काले कारनामो की खुली पोल उन्हे मलाल है
हुई दुर्व्यवस्थाये,सुव्यवस्था हुई अब बौनी है
बन्द और  हडताल से महंगाई हुई चौगुनी है
फुल गये हाथ पैर जब हालात हुये विकराल है
पक्ष विपक्ष खैलते रहे यहाँ आँख  मिचौनी है
स्थगित रही बैठके अब चर्चाये कहा होनी है
हुडदंग हंगामो के बीच होता रहा धमाल है
बडबोले  अनियंत्रित बोल आजकल  वे बोले है
कूपमन्डूक मानसिकता के भेद जिव्हा ने खोले है
वाकपटुता पर केन्द्रित राजनैतिक इन्द्रजाल है

महंगी पड़ी मूकता है


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स्नेह कहा रुकता है भेद कहा छुपता है
महंगी पडी होशियारी ,महंगी पडी मूकता है

कोलाहल गति  को प्रगति को रोकता है 
अकैला एकांत में मन ही मन सोचता है
छुपाये नही छुपी मानसिकता कुरुपता है

मन ही मन कुढ़ते है ,भाव कहा जुडते है
सॅकरी हुई है गलिया ,फुटपाथ सिकुडते है
कायराना आचरण है पलायन  विमुखता है

सोमवार, 10 सितंबर 2012

मुक्ति के ही फूल झरे है

दे रहे शुभकामनाये
शुभकामनाओं  से डरे है
षडयंत्र है दुर्भावनाये
जख्म होते अब हरे है

झुठी है सम्वेदनाये
वेदना लगती सही है
वर्जनाओं की दिवारे
वंचनाओं की बही है
प्रीती को लुटते लुटेरे
झुठ से किस्से भरे है

मैला मन है मैला आँचल
मैले मे मन तू चला चल
भोले मन अब तक छला है
छोड जग तू चल हिमाचल
मंजिले पुकारती है
मुक्ति के ही फूल झरे है

शनिवार, 8 सितंबर 2012

आकलन भी गलत ठहरे

आँखों में भरे आंसू ,बिखरे हुए सपने है
परायापन छाया है ,कौन यहाँ अपने है
आशाओं का आँचल ,बिछड़ गई छाया है
फिर हमें चलना है ,स्वाद कई चखने है

समय की कसौटी पर खरा कौन उतरा है
स्वार्थ से भरे रिश्तो ,रिश्तो पे खतरा है
इतना सब सहना है फिर भी यहाँ रहना है
पैतरे पर पैतरा है जीवन हुआ कतरा है

शब्द तो वही रहे, उनके कई आशय  है
भावो के कई रूप ,दुराशय सदाशय है
बिगडी हुई दशाये है,बहकी हुई दिशाये है
आकलन भी गलत ठहरे उखड़े महाशय है

बदरिया बारिश की कैसी यहाँ बहकी है
मनोरम हुआ  मौसम ,बगिया भी महकी है
झरते हुये झरने है,सरोवर जो भरने है
शीतलता छाई है,निर्मलता चहकी है

सुगन्ध मे विस्तार है

रूप मे सौन्दर्य है रंग रूप मे संसार है
स्पर्श मे आनंद  है ,आनंद  अपरम्पार है
गन्ध मे अनुभूतिया है,सुगन्ध मे विस्तार है
है रस भी रहस्यपूर्ण ,रस रंग की बौछार है

सादगी मे ताजगी है ताजगी मे जिन्दगी
दोस्ती की राह देती,दोस्ती और  बन्दगी
दोस्ती विश्वास है,विश्वास ही संसार है
जख्म दे न दोस्तो को दोस्ती दे जिन्दगी


व्यक्ति मे है मान रहता,अभिव्यक्त स्वाभिमान है
व्यक्तित्व मे निहीत रहे गुण,गुणवान ही इन्सान है
चरित्र की परिपूर्णता ही ,ज्ञान की सम्पूर्णता है  
चरित्र से परिपूर्ण ज्ञानी, गणमान्य है विद्वान है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज