गुरुवार, 29 जून 2023

मंज़िल ही पास आती



कुछ  करने  अभिलाषा  जिसके है  पास 
सुख  दुख  की  चिंता  न  होता  उल्लास 
धरता  है  प्राणों  में  धीरज  का  बीज़ 
उड़  जाये  जीवन  मे  चाहे  उपहास 

कर्मों  का  योगी  है  बिल्कुल  गुमनाम 
पद  यश  की  आशा  न होता  निष्काम 
भगता न  वह  पथ  से कर्मों का  वीर 
मंजिल  ही  पास  आती  उसके  ही  धाम




निकलेगी पीर


         
           दीपक  से  उजियारा 
               बादल से नीर 
          पेड़ों  से  फल  पाओ
              पर्वत  से  धीर 
           भर लेना  साँसों  में 
               थोड़ा  सा  ग़म 
              गूंजेगा  नभ  सारा 
                 निकलेगी  पीर 


बुधवार, 28 जून 2023

जो कुदरत पे हारा है



 

तलहटी पर्वत की
 निर्झर  की  धारा  है
धारा से  सुन्दरता 
नदिया तट प्यारा  है  
कुदरत  मे  रह  कर  जो 
हर  पल  को  जीता  है 
जीवन  तो  उसका  है 
कुदरत  पे वारा  है 

बादल  से  नभ  उतरे  
छोटा  सा  गांव 
तलहटी  पर्वत की 
ठण्डी  सी  छांव 
बिछोना  धरती  पर  
मख मल  सी  दूब 
जीवन हो जल जैसा  
जिसमे ठहराव





जीवन  का  अमृत  तो  
उसने  ही  पाया  है 
नित  नई सरगम का  
गीत  यहाँ  गाया  है 
गीतों   में  हर  ग़म  है 
संगीत  में  सरगम  है 
सरगम से सूर  सजा
मन  को  महकाया  है 

अपना है अंदाज


ऊँची  जिसकी  सोच  रही,   ऊँची  है  परवाज़ 
मूल्यवान मौलिक  वहीं, अपना है  अंदाज 

कर्मों  से बोल  रहा  ,मुख से  न  वाचाल 
मरु थल में नीर मिला , खोदे  जो  पाताल 

उसका  कोई  मूल्य  नहीं,  जो  व्यक्तित्व  विहीन 
अपने दुर्गुण  दूर  करे ,  सुसंस्कृत  कुलीन 

सोमवार, 26 जून 2023

बेटा इकलौता है

 जो खुद  ही  न  सुधरा 
ख़ुद  ही  पछताया  है 
जीवन मे  सुख  नहीं 
दुख ही तो पाया  है 
आँखों  से  निकले  है  
जब  उसके  आँसू 
आँसू के  जल  से  ही  
खुद को  नहलाया  है 

भीतर  ही  भीतर  जो 
 छुप छुप कर  रोता है 
मिलता  कहीं  चैन 
जगता न  सोता  है 
सच मुच न  होती  हैं 
उसकी  भरपाई  हैं 
दुख दर्द  पाता  है 
बेटा  इकलौता  है 

रविवार, 25 जून 2023

साज और श्रृंगार है

खन खनाती चूड़ियों  में 
 साज  है श्रृंगार  है 
बज  रही  पायल जहा  पर 
सुर  अपरम्पार  है 
 आंख में  लज्जा  पानी
 बिंदिया  लगती  सुहानी 
स्वर जब  कोमल मधुर  हो  
स्वर्ग यह  संसार  हैं 

सपनों में कर्मो की


 पसीना  है  गंगा जल 
जब  किसने  बहाया  हैं
 मेहनत से  शोहरत  का  
सूरज  उग  पाया  हैं 
सपनों मे  कर्मों  की  
रहती  जहा  गीता  है 
मस्तक  वह पिता  के 
चरणों  में झुक  पाया  है 

शनिवार, 24 जून 2023

उड़ते तो हौसले है

बेजुबान परिन्दे  है  
बोलते  हुए  घौंसले  है
पंख  तो सिर्फ  फड़फड़ाते 
उड़ते  तो  हौसले  है 
हौसले से  नत मस्तक 
सारी  य़ह  दुनिया  है 
मेहनत  के  बिन  हुए  
वादे  यहा  खोखले  है 

संस्कृति और  संस्कार  की  
चिंताए  जिन्हें  सताती  है 
 तहजीब  यहां बोलने की 
उनको  नहीं  आती  है 


चलती  हुई  जिंदगी  है 
न  छांव  है  न  पानी  है 
निगाहें  फेर ली  जिसने  
उनकी  ही  मेहरबानी  है 

जिंदगी  रोज  नये 
 नंगे  सच  दिखलाती  है 
हौसलों  को  तोड़ती  है  
फिर  मुस्कुराती  है 

सपनों   में  न  सकूँ 
जिसने नहीं  पाया  है 
बेसुरा  सा  राग  है  
जिंदगी  भर गाया है 

अरमान  दिल  से  हमने 
निकाल  कर  फेंके  है 
गिरते  हुए लोगों  के 
अंदाज  गिरे  देखे  है 




न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज