गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

chahat


आस जगे तो मिले जिंदगी


टूट गई चाहत है
मिली नहीं राहत है
दिल में तमन्ना है
तो मन में उमंगें होगी
डस रही है भावना को
कटी -कटी सी जिंदगी
नियति की यह क्रूर हंसी
वेदना के ज्वार जगाये
टूट गया है मेरा तन मन
मन को को भाए मिल न पाए
निराशा भी जगती क्यों है
आस जगे तो मिले जिंदगी

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

आदमी


परिधानों में लिपट लिपट कर
नग्न हुआ है आदमी
नई सभ्यता से बहका है
सौम्य सरल वह आदमी
रही नहीं है अब वह नरमी
शेष नहीं आँखों में पानी
आत्म मुग्धता के दर्पण में
खो जाता है आदमी
डूबा वासना में तो प्यार
टूट गए है दिल के तार
क्या होगा रे भावी कल में
नहीं ये सब कुछ लाजमी

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

प्रीत ने किया था वादा

थम जाती है आंधिया और तूफानी काली घटाए ,

सोच लेता निश्चल मन तो सुगम बन जाती है राहे

कंटको से क्या डरे हम हो गया विदीर्ण ये मन

ठोकरे लगाती गई है ,टूट गई संवेदनाये


ह्रदय में समाये बवंडर आंधी
किस्मत ने कैसी इमारत बांधी
दोस्ती के तेवर थे दुश्मन सरीखे
भोले विश्वास की उसने लुटी थी चाँदी


मीत ने किया था वादा जिंदगी का गीत होगी
टूट भले ही साँस जाये वह अनूठी प्रीत होगी
रास्ते पर हम बढे सामने जो थी हकीकत
टूट गए सारे वादे यातना हमने है भोगी


भावो की सीता का मंदिर बनाओ
गीतों की गीता को होठों पर सजाओ
ऊसर की अगन को स्वयम में समाकर
फिर दहकती धरा की पीडा को बताओ

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

सार्थक जीवन ही तब कहलाया

बोगेनवेलिया की गंधहीन बेलो में
सौन्दर्य फूलो का इतराया
तो महक उठा गुलाब फ़ूल भी
लावण्य संग सौरभ को लाया
फिर चहक उठी इतने में ही
गुलमोहर की शीतल छाया
सौदर्य गंध है अर्थहीन ही
राही को जब तक न सुख पहुचाया
पेड़ पुष्प बेल संवाद सुन कर
दूब के त्रण का स्वर लहराया
उसका कहना था की मित्रो
सार्थक जीवन ही तब कहलाया
जब छांव संग सौन्दर्य संग ही
वनचर की भूख जो हर पाया

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

roopvati


गोरा तेरा रंग है गदराया हर अंग
रूपवती के रूप पर है ब्रहम्मा जी दंग 

ईर्ष्या नफरत से तपे मेरे मन के पाव
ऐसे में ये प्रीत बनी ठंडी-ठंडी छांव 
नर्म-नर्म कलाईया ,नाजुक गोरे हाथ 
धवल चन्द्रमा चाँदनी ,तेरे रूप के साथ

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज