मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

किस्मत अब तो उन्ही करो में

कड़े सुरक्षा के घेरो में 
रहे निरंतर जो पहरो में 
छुपी हुई है निष्ठुरता तो,
कुर्सी के कुत्सित चेहरो में 

जटिल प्रक्रियाओ में घिरकर 
मिटी योजनाओ कि स्याही 
संवेदना का स्वांग रच रही 
शोषणकारी नौकरशाही 
कैद हो गई है जनता की 
 किस्मत अब तो उन्ही करो में 

धसे हुए है प्रगति पहिये 
बिकी हुई सम्पूर्ण व्यवस्था 
थकी हुई बेहाल जिंदगी 
ढूंढ  रही खुशहाल अवस्था 
समाधान के सूत्र खोजती 
बीत गई आयु शहरो में 

यश वैभव की ऊँची मीनारे
कलमकार को ललचाये 
चाटुकारिता के हाथो में 
राज्य नियंत्रण रह जाए 
सिमट गए सुख के उजियारे
  उनके ही आँगन कमरो में
 

रविवार, 29 दिसंबर 2013

भक्ति में रहता समर्पण

भक्ति में रहता समर्पण और त्याग में संन्यास है 
भावना का यह सरोवर ,नहीं वाक्य का विन्यास है 

रहता निश्छल ह्रदय में ,भाव से अभिभूत है 

आत्मा होती बैरागन ,मन हुआ अवधूत है 
आस्था है चिर सनातन ,भक्त का विश्वास  है 

 जानता है मानता है ,पर कहा वह सुख है 
राधा जी  रूठी हुई है ,हर ख़ुशी में दुःख है 
भक्ति में शक्ति है रहती और प्रेम में उल्लास है 

राम से होती रामायण, श्रीकृष्ण से संगीत है 
प्यार कि हर हार में ही ,होती ह्रदय की जीत है
भाव भी भींगे हुए है पर बुझ  पायी प्यास है

बुधवार, 20 नवंबर 2013

मीलो की दूरिया

मीलो की  दूरिया 
मिलने  कि मजबूरिया  हो सकती है 
दिलो में दूरिया पैदा  नहीं कर सकती 
लम्बे और दीर्घ अवधि के अंतराल 
समय तो तय कर सकते  
आत्मीयता  कम नहीं कर सकते 
दुश्मन कितना भी दुष्ट हो 
उसका प्रहार कितना भी पुष्ट  हो 
संकल्प का बल हिला नहीं सकते 
राहे कितनी भी वीरान हो
  सफ़र में कितनी भी थकान हो 
जीत जाता अंतत साहस है 
मृत्यु के क्षणो में भी व्यक्ति के पास होती 
जीने कि जिजीविषा 
रहती जीवन कि आस है 
जग में कितना भी कोलाहल हो 
बिखरा  कितना भी हलाहल हो 
लग जाता योगी का ध्यान है 
जीवन में कुछ जुड़ता जाए 
अपनी जड़ो से जो जुड़ जाए 
व्यक्ति होता वह महान है


शनिवार, 16 नवंबर 2013

क्या कोई निवारण है ?

मनुष्य और जीव -जंतु में कितना फर्क है 
जीव जंतु अपने आकार और प्रकार से 
तरह तरह की सूचनाये देते है 
सर्प  अपने आकार से डसने कि सूचना 
गिध्द अपने रूप से नोचने कि सूचना देता है 
सिंह अपनी चाल से और भाव भंगिमा से 
आक्रमण कि सूचना देता है 
परन्तु मनुष्य का  दोगलापन 
उसके आचरण का दोहरापन 
कोई सूचना नहीं देता 
 सूचना दिए बिना अचानक अप्रत्याशित आघात करता है 
दुष्ट व्यक्ति अकारण विश्वास घात करता है 
डसता  है  धीमे जहर से पर डसने का कोई कारण नहीं है 
दोगलापन उसे डसने का कारण देता है 
कब नोचेगा ?कितना नोचेगा ?क्यों नोचेगा ?
गिध्द की एक सीमा है 
पशु के साथ उसकी  प्रकृति है 
प्राकृतिक गरिमा है 
पर इंसान ने अपनों को  ही बुरी तरह नोंचा है 
सपनो को तोड़ा है
जख्मो को बार -बार खरोंचा है 
समाज और परिवार में ऐसे कई उदाहरण है 
दोगलेपन का भी क्या कोई निवारण है ?

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

मन अमृत है विष मत घोलो

खुद को तोलो फिर कुछ बोलो 
मन अमृत है विष मत घोलो
जीवन तो वरदान है 

चन्दा तारा यह जग प्यारा 
जीवन सारा तू खुद हारा 
क्यों करता विषपान है?

भाव रंगीले नीले पीले
 चिंतन का वट  तट रेतीले 
करता क्यों अभिमान है ?

पल पल हर पल 
 कल  छल कल छल 
चंचल मन अविराम है 

टिम टिम टिम टिम 

 तारे टिम टिम
 रिम -झिम रिम झिम 
बारिश रिम झिम  कर लेना रस पान है 

राते  गहरी शाम सुनहरी 
दिन गुजरे और उषा ठहरी 
सुबह की  मुस्कान है  

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

बहुत है

आप पूजा करो या न करो 
पर आपके कारण कोई पूजा करने में समर्थ हो जाए यही बहुत है
आप सेवा करो या न करो 

आपके कारण कोई सेवा कर पाये यही बहुत है
आप दान करो या न करो

 पर आपके मितव्ययिता के कारण कोई दान कर पाये यही बहुत है

आप अच्छे वस्त्र और आभूषण पहनो या मत पहनो

 पर आपके सादगी किसी नंगे गरीब बच्चे और 
किसी नारी कि लज्जा ढक  पाये बहुत है
आप ईमानदारी से कार्य करो या न करो 

आपके व्यवहार से कोई ईमानदार रह पाये पर्याप्त है
आप  चरित्रवान रहो या न रहो आपकी ईच्छा  है 

पर आपके कारण किसी का चरित्र सुरक्षित रह जाए यह पर्याप्त है 

आपका व्रत उपवास उतना नहीं है आवश्यक 

जितना आवश्यक है कि किसी भूखे को समय से समुचित भोजन मिल जाए
आपकी साधना ईष्ट को  जब ही प्रसन्न कर पायेगी 

जब संसार कि प्रत्येक व्यक्ति के प्रति समदृष्टि हो आपकी 
प्रत्येक परिस्थिति में आपके मन में उल्लास है 

आप पढ़ाई  या स्वाध्याय करो या न करो 
पर आपके संयमित आचरण और उदारता से पढ़ पाये आगे बड़ पाये बहुत है
आप भले अकर्मण्य रहो भले आलस्य रत हो पड़े रहो

 पर आपकी अकर्मण्यता किसी कि सक्रियता बाधित न करे बहुत है
आप कुछ अच्छा रच सको या न रच सको

 पर आपकी द्वारा दी गई शान्ति से कोई व्यक्ति कुछ रच दे यह बहुत है

आप अपनी जिंदगी न बना पाये तो कोई बात नहीं 

पर आप किसी कि जिंदगी और भविष्य खराब न कर दे इतना ही काफी है
आप किसी  के प्रति दुर्भावना रखे या रखे द्वेष 

पर आपके कारण किसी कि सद्भावना और सहानुभूति सुरक्षित रह जाए बहुत है

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

नारी और नदि का अस्तित्व

नदि नदि नही नारी है नारी नारी नही नदि है
नदि और नारी सब समझती है सब जानती है
वह अपने भीतर की कमजोरिया और ताकत को अच्छी तरह पहचानती है
जीवन मे कौन है अच्छा और कौन है बुरा
कौन है पूर्णता को लिये हुये 
और है अादमी अधुरा
नदि ने अपना प्रदूषण खुद धोया है
घनघोर बारिश के भीतर किया है स्नान 
अपना आँचल भींगोया है
पर इन्सान ने अपनी गलतियो को नही सुधारा 
और फिर खूब रोया है
नदि और नारी को कोई कितना भी अपवित्र कर दे
 उसके पास पावनता के साधन है
और पुरुषो के पास उपयोग है उपभोग है 
शोषण की मानसिकता है ,भोग के संसाधन है
इसलिये नदि और नारि की सामर्थ्य को कोई नही समझ पाया है
नारी ने नदि बन कर और नदि ने बह- बह कर अपना अस्तित्व बचाया है

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

सूरज की संघर्ष यात्रा

उषा साक्षी है 
सूरज के संघर्ष यात्रा की
उसने देखा है 
सूरज के अँधेरे से लड़ने का साहस
सूरज का  वह साहस और पौरुष
 जो हम नहीं देख पाए 
हमें  तो  केवल  सूरज की सम्पूर्णता का ही अहसास है
हम नहीं जान सकते 
सूरज ने  सम्पूर्णता पाने के लिए कौनसे दर्द सहे है
सूरज के ह्रदय में दुखो के कौनसे लावा बहे है
इसके लिए हमें ब्रह्म मुहूर्त में पूरब के क्षितिज 
को निहारना होगा
देखना होगा की एक अन्धेरा 
उदित  होने वाले प्रतिभा के रवि को किस प्रकार डराता है
नया नवेला सूरज  जब उगने को होता है
 तब  अन्धेरा किस तरह गहराता है
जिसने भी सूरज की उस संघर्ष यात्रा को देखा है
प्रतिभा रूपी रवि को उसने ही जाना पहचाना है परखा है 

 

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

निर्धनता मन में भरी हुई

राहे कांटो से भरी हुई 
खुशिया दुखो से डरी  हुई
कुंठित होती अभिलाषा है
 तृष्णाए  मन में हरी हुई

हुए स्वप्न पखेरू
है घायल
 और नदी हिलोरे लेती है 
जहरीली होती  हुई फसले
फसले  पोषण कहा देती है
रेतीले सुख बहे जाते 
आशा जीवन में मरी हुई

यहाँ मिला सत्य को निर्वासन 
सज्जनता दुःख सहती है
नारे नफ़रत से भरे हुए 
दानवता विष को बोती  है
यहाँ दया दीन  पर नहीं आई
 निर्धनता मन में भरी हुई 

यहाँ मिला दीप से काजल है 
निर्बल का होता मृग दल है 
हुआ दीप शिखा से उजियारा 
उजियारे में होता बल है 
रोशन होता है अंधियारा
बिंदिया  मांथे पे धरी हुई

शनिवार, 21 सितंबर 2013

पायलिया सी खनक रही, रूपवती की देह

बारिश बूंदे बरस रही ,बरस रहा है नेह
पायलिया सी खनक रही, रूपवती की देह 

रूप सलौनी चंद्रमुखी ,अंधियारी है रात
अंधियारे में बहक रहे ,तन मन और जज्बात

मन में क्यों कलेश रहा ,क्यों कलुषित है चित
है  नारायण  साथ तेरे  ,मत हो तू विचलित

नदिया निर्झर बह रहे ,निर्मल बारिश जल 
आसमान भी स्वच्छ हुआ ,स्वच्छ हुए जल थल
 

बुधवार, 18 सितंबर 2013

आत्मा प्रदीप्त है

अंधियारे में जलता ,आस्था का दीप है
आस्था में पूजा  है ,ईश्वर समीप है  
भक्ति में शक्ति है ,शक्ति में है ऊर्जा 
ऊर्जा है भीतर तक ,आत्मा प्रदीप्त है 

तन मन के भीतर ही ,ईश्वर की खोज है 
आत्मा में पावनता ,अंतस में ओज है 
तन मन को चिंतन को ,कर निर्मल जीवन को
चिंतन है चित में ही, कीर्तन में मौज है  http://4.bp.blogspot.com/_e8FOXal27sQ/TCeI_rtQ0SI/AAAAAAAAAIY/xSq_DNVgWXo/s400/Deepak.jpg

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

पढ़ा दर्द का पहाड़ा है

लहराता हुआ जल है ठहरा हुआ आकाश है
बिखरे हुई रिश्तो में हुई अपनों की तलाश है
प्रेमाकुल पायलिया पर मिटता  विश्वास  है
जीवन के चारो ओर  फिर बिखरा विनाश है

बिगड़तेहुये  हालात  को लोगो ने बिगाड़ा है
गुलशन हुए इस घर फिर किसने उजाड़ा है
चाहो की राहो को मिली नहीं राहत है
आहत  हुई भावनाए ,पढ़ा दर्द का पहाड़ा है

बुधवार, 11 सितंबर 2013

दंगे तेरी भेट चढ़ी, चलती हुई दूकान

जहां  चाह वहा राह मिली ,चाहत कितनी दूर
चल चल कर थक पैर गए, हो गए थक कर चूर

चेहरो पर मुस्कान नहीं ,उजड़े हुए मकान
दंगे तेरी भेट चढ़ी,  चलती हुई दूकान

महलो के मोहताज नहीं ,बचता एक ईमान
रहा सत्य ही शीर्ष पर ,सत्य करे विषपान

रिश्ते रस से हीन हुए, नहीं बचा कही रस
ममता मन से छूट गई ,प्रीत हुई बेबस

राज गए महाराज गए ,गए संत अब जेल
जेलों में अब खूब हुई ,रेलम -ठेलम -पेल

सोमवार, 9 सितंबर 2013

सुन्दर सज्जन प्रीत से रहते क्यों अनजान

सुन्दरता  अभिशाप नहीं सुन्दरता वरदान
सुन्दर सज्जन प्रीत से रहते क्यों अनजान

मानसिक सौन्दर्य  बिना, खिला नहीं कोई रूप
सुन्दरता बिखरी हुई ,नैसर्गिक स्वरूप

विश्व मोहनी बुला रही , लूट रही है चैन
भस्मासुर भी भस्म हुआ ,भगवन की थी देन

यहाँ मुख्य सौन्दर्य नहीं मुख्य  हुआ है ज्ञान
मुखरित होता मुख से ,वाणी से विद्वान

 वाणी में सौन्दर्य नहीं  जिव्हा कड़वी नीम
कोरे रूप को क्या करे ,जीवन हो गमगीन

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

कायर वीरो का स्वामी है

अब घृणा गिध्द ने भावो के घावो को खाया नोचा  है
ह्रदय में उनकी याद रही आहे भर भर  कर
सोचा है

 हो  नयन  शून्यवत ताक रहे एकांत रहा  एक साथी है
रही असत तमस की साजिशे चींटी बनती अब हाथी है
दुखड़ो से मुखड़े सिसक रहे  अश्को
को किसने पोछा है

पथ पर है कांटे और कंकड़ मिली कर्मो को गुमनामी है
कायरता इतनी भरी हुई कायर वीरो का स्वामी है 

शब्दों से घायल होता मन हर बोल यहाँ पर ओछा  है 

सुख दुःख गम खुशिया साथ रहे अपनों से इनको बाँट रहे
सपने बनवाते शीश महल रही चहल पहल और ठाट  रहे
मिलता जख्मो को दर्द यहाँ ,जख्मो को गया खरोचा है 

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

खुशिया

खुशिया मिलती नहीं खुशिया चुराई जाती है
रिश्तो को  सींचने से खुशिया पाई जाती है
जब हम दूसरो को खुशिया देते है तो किसी पर अहसान नहीं करते है
अपने भीतर को खुशियों से संजोते है 
खुशियों में जीते है खुश होकर मरते है
ख़ुशी की अपनी अपनी परिभाषाये है
खुश होकर जिए यह हर जन की आशाये है
पर  आशाये ही रखे यह तथ्य व्यर्थ है
तरह तरह से खुश रहे सही खुशिया पाए ऐसे सुख से हम हुए समर्थ है
ख़ुशी कभी सुख सुविधा से नहीं आती है
सच्ची ख़ुशी अभावो के भीतर आत्मा को निखरा  हुआ पाती है
आत्मीयता की ऊर्जा पाकर जीवन में सक्रियता सदभाव  फैलाती है
आपसी सद्भाव से ही पाया उल्लास है
खुशिया चहु और बिखरी रहे मिलता रहे विश्वास  है

गुरुवार, 29 अगस्त 2013

गलतिया

जीवन में गलतिया हर व्यक्ति से होती है
परन्तु गलतियों की पुनरावृत्ति बुरी आदतों का कारण होती है
बुरी  आदते व्यक्ति को अपराधी बना देती है
जब लोग गलतियों को बर्दाश्त करते है
 तो व्यक्ति स्वयं को सही मानने का भ्रम पाल लेता है
अपराध की तह तक जाने के लिए
अपराधी की मानसिकता तक जाना होता है
अपराधी के मनो मष्तिष्क के भीतर विचरने वाले विचारों
 षड्यंत्रों को पाना होता है
इसलिए गलतियों को मत दोहराओ
गलतिया करने वालो को
 जहा  भी अवसर मिले गलत जरुर ठहराओ
यह सच है इंसान गलतियों का पुतला है
पर गलतिया करते हुए यहाँ कोई इंसान नहीं निखरा है
गलत स्पष्टि करणों  से झूठा हुआ आदमी 
व्यक्तित्त्व बिखरा है

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

विमल मति

ज्योति रूप परमात्मा, द्वादश ज्योतिर्लिंग
आलोकित अंतर करे ,शिव मंदिर शिव लिंग

परम पिता परमात्मा ,माता पार्वती
महादेव दो वर हमें ,हो निर्मल मन विमल मति

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

चिंतामन है शिव

परम धरम अनुराग है ,करम धरम की नींव 
तू क्यों चिन्तारत हुआ ,चिंतामन है शिव 

सावन होता हरा भरा ,हरियाता हर खेत 
नदिया लाई अपने साथ, कितनी सारी रेत 

भाग्य रथी  भागीरथी ,भव के हरते पीर 
जीवन सुखमय कर देता ,मन का निर्मल नीर

राज गए राजा गए ,चले गए सम्राट 
जर्जर  काया होत रही, पकड़ी सबने खाट 

बारिश झर -झर  बरस  रही, सरिता हुई निहाल
तट सेतु अब टूट गये ,मैदानों में ताल  

रविवार, 4 अगस्त 2013

कौन नहीं चाहता

संसार  में कौन नहीं चाहता की उसके शत्रु नहीं हो ?
यह धरा सभी और मित्रो और हितैषियो सी घिरी हुई हो
कौन नहीं चाहता की वह सभी प्रकार की आशंकाओं और भय से मुक्त हो ?
सभी प्रकार से सुरक्षित हो जीवन आनंद और उल्लास से युक्त हो
कौन चाहता वह योध्द्दा अपराजेय हो ?
वैभव और ऐश्वर्य से हो युक्त होती रहे चहु और उसकी जय जय हो
संसार में कौन नहीं चाहता वह गुणवान और विद्वान हो ?
महकती रहे यामिनी बिखरी  तारो सी  मुस्कान हो
कौन चाहता वह सूर्य सा तेजस्वी हो ?
व्यक्तित्व में हो शीतलता व्यक्तित्व ओजस्वी हो
पर इतना सब कुछ  चाहने से क्या होता है
पल्लवित परिवेश में वही  होता है 
 जैसा हमारे कर्म का बीज होता है

बुधवार, 10 जुलाई 2013

आस्था

  विश्वास  जब श्रध्द्दा  के वसन  धारण  कर  लेती  है 
तो आस्था  बन  जाती  है 
हजारो  आस्थाये जब  प्रतिमा पर एकत्र  हो जाती  है 
तो प्रतिमा  प्रतिमा नहीं रह जाती 
मंदिर में जीवंत  हो वह  देवता और  देवी  कहलाती  है  
आराधना जिसकी हम करे 
वे हमारे  आराध्य  कहलाते है 
अनिष्ट  का  हरण  करे 
अभिष्ट  की पूर्ति करे हम  उन्हें ईष्ट  कहते  है 
ईष्ट  हमारी  साँसों  में और ईष्ट के भाव  लोक  में  हम  रहते है 
आलॊकित करे अन्तर्मन  को 
उस व्यक्तित्व  को हम महापुरुष , संत, महंत , कहेंगे 
जीवन  की सकारात्मकता  को छोड़ कर 
तो हम भयभीत  ही रहेंगे 
अच्छाई जब नहीं मिल पाती है
 तो आशाये बिखर बिखर जाती है 
सद  विचारों के बीच पाकर यह आत्मा  
अपनी वास्तविकता समझ  जाती है 
अंधियारे  के  भीतर  हलकी सी रोशनी 
जहा  जहा  भी नजर आती है 
 अनुभूतिया  अवतरित  हो 
परम  सत्ता  की नजदीकिया  पाती  है 
पी  ले हलाहल  का   प्याला 
तो व्यक्तित्व शिव  शंभू  कहलाये 
भूंखे  नंगे को दे  निवाला 
तो  विश्वनाथ   बन  कर आये 
सज्जनों  का पाकर  साथ तन   चंगा 
और यह  मन  गंगा  में नहाये 

बुधवार, 26 जून 2013

हे भगवन लौटा दे, वापस मुस्कान

भींगी हुई  दोपहर ,भींगी  हुई शाम 
भींगा  हुआ हर पल ,बह गये  धाम 

तीर्थो में  भर  गये  है , सारे  ही  कुंड 
क्षत -विक्षत  लाशें  है, बिखरे नर  मुंड 
बहुतेरे  मिल  गये है, ढेरो  गुमनाम 

बदला है बारिश  ने ,कितना  भूगोल 
पैरो  में छाले है, बम  हर हर तू बोल 
हे भगवन  लौटा  दे, वापस  मुस्कान 


गुरुवार, 20 जून 2013

बद्री और केदार

प्रकृति में शक्ति है शक्ति में समाहित शिव है 
शक्ति के बिना शरीर ही नहीं शिव भी निर्जीव है 
शिव  की पूजा में आस्था है अभिषेक है आचमन   है
शक्ति पूजा में भक्ति है प्रार्थना है शुध्द चित्त और मन है 
रहे प्रकृति सुरक्षित और रहे निर्मल पर्यावरण है 
शिव पूजा में हमारी होती आस्थाए कम है
 मनो मस्तिष्क में पले  कई भ्रम है 
शिव शक्ति की संयुक्त पूजा में प्रकृति का  संरक्षण है 
पुरुषार्थ है बल है और परिश्रम है 
फिर क्यों हुई विनाश लीला दिलो में गम और आँखे नम है 
येन केन प्रकारेण  हमने प्रकृति को सताया है 
प्रकृति को सता कर शिव शम्भू और केदार को किसने पाया है 
इसलिए शिव और शक्ति की पूजा के नवीन मानदंड अपनाओ 
प्राकृतिक संसाधनों को बचाओ 
शिव और शक्ति को तन मन में बसाओ 
प्रकृति में समाहित बद्री और केदार है 
ईश्वर  उञ्चाइयो में ही नहीं गहराईयों में भी है
 नैया की पतवार है 
परम सत्ता के बल पर टिका हुआ यह संसार है 

शनिवार, 15 जून 2013

मिथ्या ही विज्ञापन ,नहीं दीखता उल्लास

 रहती है जीवन में ,मरुथल की प्यास 
इच्छित न मिल पाता ,नित दिन उपवास 

उड़  गई निंदिया भी, अलसाए नैन 
तकते है तारो को, मिलता न चैन 
मिल जायेगी चितवन ,मन का विश्वास 

बारिश की बूंदों से ,होती रिम झिम 
रह गई दिल में ही ,चाहे अनगिन 
चाहत की राहो पर, मिलता उपहास 

गाँवों में अंधियारा ,दीपक टिम -टिम 
जर्जर छत स्कूल की ,मिलती  तालीम 
मिथ्या ही विज्ञापन ,नहीं दीखता उल्लास 

शुक्रवार, 14 जून 2013

सुबह जग -मगाई है

नीले नीले आसमा पर, लालिमा छाई है 
सूरज की मेहनत ने, अरुणिमा पाई है 
पौरुष से किस्मत है, बजती शहनाई है
 संध्या ने सूरज की, तृष्णा  बुझाई  है 

अस्त हुये दिनकर ने ,शीतलता पाई है 
निशा के आँचल में ,निंदिया गहराई है 
खग -दल भी गुम सुम है, पवन सुखदायी है 
उग आई उषा  है ,सुबह जग -मगाई है 

प्रियतम की आँखों में, दिखती सच्चाई है 
प्यारा सा जीवन जल, मृदुलता पाई है 
भावनाये बहकी है ,मेहंदी रंग लाई  है 
प्रीती से जीवन है ,हुई ईर्ष्या पराई है 

भर आई आँखे है, गम की गहराई है 
गागर में सागर है ,सरिता तट आई है 
भावो के आँगन में ,पाया है अपनापन 
सपनो में अपनों की ,झलकिया पाई है 


गुरुवार, 13 जून 2013

झलकी व्यथाए

थम जाती है आँधियाँ  और तूफानी काली घटाए 
सोच लेता निश्छल मन तो, सुगम बन जाती है राहे 
कंटको  से क्या डरे हम ? हो गया विदीर्ण ये मन 
ठोकरे लगती  गई है ,टूट गई  संवेदनाये 

वेदना किसको बताये ,विरह की लम्बी कथाये 
काल और कंकाल पर ,नृत्य करती कामनाये 
प्रीती ने विश्वास  तोड़ा ,नियति ने उदास छोड़ा 
सत्य की कश्ती डूबी तो, सृजन में झलकी व्यथाए 


मंगलवार, 11 जून 2013

कैक्टस और बबूल


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कैक्टस की तरह रूखे कांटो से भरे 
बिना उगाये ही उग आये व्यवहारिक धरातल पर विद्वेष के वृक्ष 
क्योकि मै  नहीं कर पाया
 शूल को फूल कहने की भूल 
मुझमे उस साहस का है अभाव जो कहला देता है 
अँधेरे को उजाला और सफ़ेद को काला 
मिटा देता है सत्य और असत्य के बीच का अंतर 
तब भ्रमित पथिक वैभव के अन्धकार में लिपट कर 
दिशाहीन ध्येय विहीन जीवन पथ की और हो जाता है अग्रसर 
मै  नहीं बनना चाहता दिशाहीन ध्येय विहीन भ्रमित पथिक 
इसलिए मुझे साँसे लेना ही होगी 
उस जहरीले वातावरण में जहाँ  उगते है 
कैक्टस और बबूल  

रविवार, 9 जून 2013

थोड़ी सी पीर

मौसम की गर्मी से ,मिली नहीं ऊष्मा है 
पसीने से लथ पथ है, टूटा हुआ चश्मा है 
हाथो में हंसिया है, महँगी हुई खुशिया है 
मिली नहीं हल धर को ,सपनों की सुषमा है 

तन मन में पीड़ा है ,नयनो में नीर 
फसलो के पकने पर जगती तकदीर
बो देना खेतो में ,थोड़ी सी पीर 
जल होगा मरुथल में, होगा तू वीर  

भींगी हुई आँखों में ,बहुत दर्द बाकी है 
प्यासी हुई नजरे है, नहीं कही साकी है 
सूरज की गर्मी है ,कर्मी ही धर्मी है 
किस्मत ने पौरुष की, कीमत कहा आंकी है 


  

शुक्रवार, 24 मई 2013

दोषी मंगल कहलाता है


एक घना अन्धेरा जीवन में, चादर सा लिपटा जाता है 
दुर्भाग्य अँधेरी गहरी सी, खाई सा दिखता जाता है 

मिली भाग्य नहीं सुरभित, कलियाँ भवरा फिर भी कुछ गाता है 
रहा काल चक्र का घोड़ा, पथ पर तेजी से दौड़ा जाता है 
दुर्बल के दर पर धुल रहे, धीरज का फल मिल पाता है 

चौड़ी हो चिकनी सड़के हो ,वह राजपथ कहलाता है 
जहा पग डंडिया गुजर रही, गाँवों तक रस्ता जाता है 
घटनाएं जब जब होती है, निर्धन सुत कुचला जाता है 

घर घर में होते दंगल है, दोषी मंगल कहलाता है 
यहाँ अपमानो का गरल तरल, जीवन की खुशिया खाता है 
किस्तों में मिलती मौत रही ,नित मानव मरता जाता है 

पूरब से उदित हुआ सूरज ,पश्चिम में ढलता जाता है 
गैया मैया तो कैद रहे ,अब विषधर विचरा जाता है 
अब वृन्दावन की गलियों में, कान्हा भी छलता जाता है 

मंगलवार, 26 मार्च 2013

संशय ने हारी हर बाजी ,सुख सपनो का नवनीत रहा

यह कंठ वेदना लिख रहा, जीवन बाधा से सीख रहा 
ह्रदय का अंतर चींख रहा ,क्रोधित मन मुठ्ठी भींच रहा 

होली रंगों से खेल रही ,ईर्ष्या नफ़रत की बेल रही 
माता ममता उड़ेल रही ,सखीया अंखिया से खेल रही 
आँचल ने पोंछे  है आंसू  ,अनुभव आयु से जीत रहा 

चंचल लहरों में है हल चल  लहराती है बल खाती है 
वह नृत्य करे करती नखरे, तट से आकर टकराती है 
तट पे आकर मन से गाकर करुणा का लिखता गीत रहा 

महुए पे  मादक फुल रहे ,ढोलक मांदल से सूर बहे 
साँसों में बसती हो सजनी  रंगों में सब मशगुल रहे 
घूमता फिरता पूनम चन्दा  मन के आँगन में  दिख रहा 

सुविधा दुविधा की मूल रही तृष्णा आशाये झूल रही 
नित रंग बदलते है रिश्ते शंकाये थी निर्मूल रही 
संशय ने हारी हर बाजी ,सुख सपनो का नवनीत रहा  
 

सोमवार, 25 मार्च 2013

जल

जल की सरलता और तरलता प्रवाह देती है 
तृष्णा को तृप्ति देती है
 इसलिए जल की तरह सरल और तरल बनो 
जल समतल पर नहीं बहता जल समतल नहीं रहता 
असमतल धरातल पर जल सदा है बहता 
इसलिए जल की तरह विषमताओ में बहो 
विषमताओ के  विद्रूप को सहो 

गुरुवार, 21 मार्च 2013

रंगों की पिचकारी

ओझल हुई राहे तो संकरी होती है गलिया 
संकीर्णता छा गई  मुरझाई हुई  कलियाँ 

आस्थाए  आहत हुई पतझड़ भी आ गई 
मौसम ने ली करवट ,होली मन भा गई 
रंगों की पिचकारी फिसला है यह छलिया 

भीलो की टोली है, हाटों  में होली है 
महुए की मादकता ,रंगों ने घोली है 
महका है गोरा तन ,बहकी हुई पायलिया 

सोमवार, 18 मार्च 2013

दे दे कोई अपनापन दे दे कोई संबल

आँखों के आंसू है ,भावो का पावन  जल 
 झरता हुआ झरना बहता है कल -कल 

आदमी का आचरण कहा हुआ निश्छल 
राहे हुई  पथरीली नहीं हुई  समतल 

थके हुए सपनो के हाथो में थमा हल 
गुजरती रही जिंदगी गुजरतारहा  पल -पल 

जीवन में  अंधे मौड़ है हालात के दल -दल 
 आचमन करे मन  संकल्प हुए निर्बल 

हुई सुबह  कातिलाना  नहीं कही हल- चल 
दे दे कोई अपनापन दे दे कोई संबल 



प्रलय का परिचय

सिमटी हुई दूरिया 
 देश से देश की 
वेश की परिवेश 
नगर  से नगर की 
डगर से डगर 
सफ़र से ठांव की 
गाँव से गाँव की 
पेड़ से छाँव की 
सिमटी ही जा रही 
 संबंधो के दायरे
 संकीर्ण होते जा रहे 
यह देख अनजाना भय 
कचोटता है ह्रदय 
सोचता रिश्तो की यह सिकुडन 
कही शून्य में न समा जाए  
तब शून्य में प्रविष्ट समष्टि को 
विलुप्त होती सृष्टि को 
कहा होती सृष्टि को 
कहा जाएगा यही है यही है 
प्रलय का परिचय  

 

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

उजाले की प्यास


विकलांगता सपनो को तोड़ नहीं सकती
मानसिकता गुलामी की दौड़ नहीं सकती
हर एक अँधेरे को रही दिए की तलाश है
उजाले की प्यास कभी मुंह मोड़ नहीं सकती

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

मात नर्मदे चपल तरंगे


पुण्य सलिला रेवा माता ,तेरे सदगुण मानव गाता
जप तप तेरे तट पर होते ,जप तप से है मन हरषाता

 
मात नर्मदे चपल तरंगे ,दर्शन पाकर हो गये चंगे
हर हर गंगे हर हर गंगे ,शिव की संगे शिव की अंगे
लहराकर इतराता आता कल -कल छल-छल बहता जाता

 
तव कीर्ति ही गाती बाणी ,तू उर्जा है तू महारानी, 

मै बालक तू मात भवानी तेरे तट बसते मुनि ध्यानी
जीवन मे जब तम गहराता तेरे तट पर मै आ  जाता

 
तट पनघट है तेरे गहरे ,सागर तट पर तू जा ठहरे
विजय पताका तेरी  फहरे  गिरती उठती पावन लहरे
तृप्त धरा को कर हरियाता तेरा जल तृष्णा हर पाता

http://tasveeronline.in/photographs/image.raw?type=img&id=873
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बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

दो कन्या को प्यार


कन्या कोई अभिशाप नहीं ,कन्या है वरदान
कन्या से धन धान्य मिले ,कर कन्या गुण-गान
कन्या से ही काव्य सजा ,सजा सुखी संसार
कन्या से ही धन्य हुआ ,धवल हुआ घर-द्वार
कन्या ने ही प्यार दिया ,दी पायल झंकार
कन्या से मुग्ध हुआ ,कलाकार फ़नकार
कन्या भ्रूण चीत्कार रहा ,मत ले उसके प्राण
कन्या पुत्री रत्न बने ,करे नवीन निर्माण
काव्य रचा तो शब्द बचा ,बचा स्वपन संसार
कन्या ने ही विश्व रचा ,दो कन्या को प्यार

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

वे भीतर से रीते है


आकाश सा आँचल हो सागर सा जल हो
ममता हो, विश्वास हो, स्नेहिल पल हो
निष्ठाए हो फौलादी आत्मा में बल हो
मानवीय आचरण सरल हो निश्छल हो

अपमानो का हलाहल पीकर जो जीते है
लिए दर्द जिगर में जख्मो को सीते है
कभी होते गिरधर कभी शिव के रूप
जो सुखो में रहते है वे भीतर से रीते है

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

शान्ति और अशान्ति


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शान्ति आत्मा का स्वभाव है

अशान्ति मे घ्रणा है अभाव है
शान्ति मे ऊर्जा है जोश है
अशान्ति मे आक्रोश है असन्तोष है
विश्व की महाशक्तिया पूर्णत शान्त है
दुर्बलताये होती अशान्त और आक्रांत है
शान्ति और मौन से शमन होते विकार है
शान्ति व्यक्ति पूर्ण रुपेण होता निर्विकार है
शान्ति मे अलौकिक परम सत्ता का वास है
अशान्ति मे है व्याकुलता का आभास है
सत्य और अहिंसा मे रही शान्ति है
झूठ और पाखंड मे समाहित भ्रान्ति है
चहु और छाया अशान्ति का साम्राज्य है
शान्ति मे सुशासन है रामराज्य है
शान्त व्यक्तित्व मे समाहित क्रष्ण बुद्ध और शिव है
शान्ति मे होता विकास शान्ति ही शक्ति की नींव है
इसलिये परिस्थितिया कितनी भी हो प्रतिकूल शांत रहो
अशांति के आक्रमण से विचलित न रहो
क्योकि शान्ति से निकल पाये सभी समाधान है
अशान्ति मे है मानसिक विचलन
अस्थिरता व्यवधान है
शांत रह कर विकट स्थितियो को सम्हालो
मन से अशांति आशंकाए हो तो मन से निकालो
शांत रह कर सहज ही परमात्मा परम शक्ति को पा लो

बुधवार, 23 जनवरी 2013

याद मे देखू छवि



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http://fc01.deviantart.net/fs70/i/2010/248/d/a/sad_face_in_sketch_by_widya_poetra-d2y22da.jpgसोंचता हूँ प्यार का इजहार कैसे मै करु

                   दर्द से चींखू यहा पर या फिर जमाने से डरु


                   दर्द मे लिपटी हुई ,दिलवर तुम्हारी याद है

                     रूप की हल्की झलक है थोड़ा सा संवाद है

                       याद मे देखू छवि और दैख कर आहे भरु


                      दूरिया मजबूरिया है  राह पे न फूल है

                       चाहते रहती अधूरी बिखरी हुई चहु धूल है

                       पंथ पर मै पग धरु और चाह पर मिट कर मरू

सबक दिल का तू सीखेगा

तू अपनी बन्द कर आँखे तेरा दिलदार दिखेगा
तेरी गुमनाम हस्ति है ,हीरा के मोल बिकेगा


चला-चल नेक राहो पर तुझे मन्जिल बुलाती है
तेरे सोये मुकद्दर मे वो बिजली जग -मगाती है
तेरे सपने तेरी दुनिया ,नया इतिहास लिखेगा


हुआ है सर्द जब मौसम,उठा है दर्द ,आँखे नम
समुन्दर सा भरा है गम,बसी है गीत मे सरगम
तमन्ना है मिले दिलवर ,सबक दिल का तू सीखेगा


मंगलवार, 22 जनवरी 2013

संतो का मैला है


विश्वास और आस्था का होता दर्पण है
आस्था के मन्दिर है आस्था के तर्पण है
त्रिवेणी तट पर कुम्भ पर्व मैला है
मैले मे हल चल है भक्ति समर्पण है

गंगा के तट पर संतो का मैला है
त्रिवेणी संगम है गुरुवर है चैला है
भक्ति मे शक्ति है भक्तो का रैला है
कुदरत ने सर्दी क्या खेल खैला है
http://spirittourism.com/wp-content/uploads/2012/03/Kumbh-Mela-Hindu-Spiritual-Travel-to-India.jpg

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज