मंगलवार, 29 सितंबर 2020

कहा गई मुस्कान

जीवन मे कही मान मिला ,मिला कही अपमान 
मन की खुशियां कहा गई ,कहा गई मुस्कान

अपने थे जो चले गये ,कहा है अपनापन
रस जीवन मे नही बचा, खोया है बचपन

जिसके मन मे स्नेह नही ,वहा नहीं भगवान
जो होता है तरल हृदय ,वह सबसे धनवान

एक प्यारी सी याद रही यादो के बीज
प्यारा था जो नही रहा रह गया है नाचीज़

कहा पे सच्चा प्यार रहा, निश्छल सी मुस्कान
मासूम बचपन सिसक रहा ,जीवन है श्मसान

सोमवार, 28 सितंबर 2020

सज्जन है संतुष्ट

सबके अवगुण देख रहा 
दिखा न खुद का दोष
दुर्जन को न कभी रहा 
थोड़े में संतोष 

बौने है प्रतिमान नये 
धीमी है रफ्तार
धीमे धीमे लुप्त हुए 
प्रतिभा अविष्कार

प्रतिबिम्बो में देख रहे 
जीवन का वो सत्य
दिखते अब तो उन्हें नही
 अपने अनुचित कृत्य

थोड़ा भी है जिन्हें मिला
वे सज्जन संतुष्ट
सब कुछ पाकर दुखी रहे
लोभी जन और दुष्ट


रविवार, 27 सितंबर 2020

ऐसा संत कबीर

जो दुख में भी दुखी नही होता नही अधीर
सुख में भी जो डिगा नही ऐसा संत कबीर

जो संतो के संग रहा रखता मन समभाव
मानव नही  देव रहा झेल गया हर घाव

खुद के बल पर टिका हुआ खुद पर है विश्वास
जो मूल से है जुड़ा यहा छू लेता आकाश

मिल कर के भी घुला नही इक ऐसा भी रंग
सुख सुमिरन भुला नही रहता सत के संग

मन मे तो संतोष नही दिखती नही उमंग 
वह कैसा संन्यास भला कैसे हो सत्संग

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

मानव वह बेडौल

मन को तू क्यों मार रहा मन का कर उपचार
मन ही मन जो दुखी रहा उसका न संसार

चिंता तन को राख करे तू चिंतित क्यो होय
चिंतन जीवन सुखी रहे चिंता को क्यो ढोय

चिंतन पथ परमार्थ भरा चिंतित क्यो है जीव
चिंतन ने नव स्वर्ग रचा स्वर्गिक सुख की नींव

मौलिकता का मूल्य नही वह तो है अनमोल
मूल से जो है भाग रहा मानव वह  बेडौल

भीतर भी है नाद रहा उससे कर संवाद 
भीतर न रह पायेगा चिंता और अवसाद

गुरुवार, 24 सितंबर 2020

जीत जाती खुद्दारी है

अंधियारे के भीतर सुलगती रही चिंगारी है 
चिंगारी के बिना उजाले ने यह दुनिया हारी है
बदल जाते है भाग जब होती सीने में आग है
हारी सदा ही खुदगर्जी जीत जाती खुद्दारी है

रविवार, 20 सितंबर 2020

हे!कान्हा नटखट

इतने दिन तुम कहा रहे, हे!कान्हा नटखट
सूनी सूनी रही डगरिया, सूने है पनघट

जंगल मे सुख चैन बसा ,नियति का सौंदर्य
झर झर निर्झर शोर करे, सिंह का अद्भुत शौर्य

सन्नाटो में शोर नही ,उपवन बिखरे राग
कोकिल बोले मीठी बोली ,करे ठिठौली काग

जीवन मे जहां राम नही वहां न निश्छल स्नेह
छल की कैकयी रोप रही है मन मे कुछ संदेह

बुधवार, 16 सितंबर 2020

पितरो का परलोक रहा

दादी का जिन्हें प्यार मिला दादा की दुत्कार 
सचमुच जीवन पाया है पाये है अधिकार

पूर्वजो का साथ मिला पाई सूझ बूझ सीख
नन्ही गुड़िया नाच रही किलकारी और चीख

कितने सारे फूल गिरे पग पग बरसा नभ
माँ के पग आशीष रहा जीवन है जगमग 

कितनी पावन रीत रही कितना प्यारा भव
पितरो का यह श्राध्द रहा श्रध्दा का उत्सव

अपने थे जो चले गए इस भव के उस पार 
पितरो का परलोक रहा सपनो का संसार

रविवार, 13 सितंबर 2020

कहा गए है वृध्द

सुख के साधन कहा गए कहा गए है वृध्द
अनुभव के जो पाठ रहे जीवन था समृध्द

अपनो का सामीप्य मिले रिश्तो का हो मान
सीख मिले बुजुर्गो से अनुभव के वरदान

धन वैभव तो वही रहा जहां पितरो का साथ
पूर्वज जब तक साथ रहे कर लो उनसे बात

जब तक उनका साथ रहा पूरे थे अरमान 
हम बच्चे ही बने रहे रखते थे वे ध्यान

हरि के हाथों फूल खिले दे कंचन मुस्कान
मात पिता से पाया तन जीवन के सामान

सोमवार, 7 सितंबर 2020

दुख का साथी कौन

टिम टिम जलता दीप रहा जुगनू के है दल
जुगनू करते शोर रहे दीप से तम उज्ज्वल

दुख के साथी कहा गये सुख के साथी साथ
पीडायें दिन रात जगी होते छल और घात

अपनो का न साथ रहा अपनो का न बल
अपनो से ही हार गया डूबता अस्ताचल

सपने सारे ध्वस्त हुए कविता हो गई मौन
छल पाकर हम पस्त हुए दुख का साथी कौन

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

साथी है बेईमान

मुश्किल जो है राह मिली सौ योजन या कोस
तुझसे तेरा छीन गया उसका क्या ?अफसोस

भोला सा इंसान रहा इक भोली सी बात
जिसके कोई साथ नही उसके भोलेनाथ

किस्मत से न लक्ष्य मिले बन तू क्षमतावान
अक्षम करता है सिकवा सक्षम का भगवान

सज्जन के साथ रहा ईश्वर का वरदान
तेरा कोई दोष नही  साथी है बेईमान

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज