मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017

धन तेरस पर तुम भी सुन लो

निर्धन को न धन मिलता है 

धन के बिन कैसा त्यौहार

धन के बिन है मस्त फकीरा

 धन हेतु रौता बाजार

 

धन तेरस पर क्या क्या लाये 

 धन सच्चा होता व्यवहार

मन निर्धन तो कैसा धन है

 तन मन वारो बारम्बार

 

ऐसा वैसा कैसा कैसा

 कदम कदम पर पैसा

पैसो से है जुड़ता रिश्ता 

पैसो पर है दारोम दार

 

धन से न मिल पाया तन है

 धन देता केवल श्रृंगार

धन के पीछे सब है भागे

 धन से होती है तकरार 

 

धन पे तेरी नियत ठहरी 

मन से मन की है दीवार

तू खूब खैले धन से मैले 

धन न मिलता है हकदार

 

सपने तुम कितने भी बुन लो

 धन तेरस पर तुम भी सुन लो

खाया पिया नहीं पचाया 

धन से भोजन स्वल्पाहार

बुधवार, 27 सितंबर 2017

महिमा की माँ गात रहा


  1.  

    माता मेरे साथ रही ,ममतामय परिवेश

    अंचल में वात्सल्य भरा ,करुणा का है देश


    माँ मन में विश्वास रहे, मन न हो निर्बल

    मन में ऊर्जा व्याप्त रहे ,श्रध्दा और सम्बल


    माँ शक्ति का रूप है, धन वैभव का स्रोत

    भक्ति से भरपूर रहे ,जलती पावन जोत


    माँ की ममता जिसे मिली ,धन्य हुआ वह जीव

    संवेदना से शून्य रहा ,ह्रदय विहीन निर्जीव


    महिमा की माँ गात रहा ,ग्रन्थ संत और श्लोक

    माँ के नयनो नीर बहा ,डूब गए तीन लोक


    माँ तेजोमय रूप है, होती ज्योति रूप

    पोषण पालन देती रही ,देती छाया धूप

     

    माँ प्रीति की गंध लिए रागिनी है राग

    भोजन माँ का पुष्ट करे जग जाते है भाग

    माँ के चरणों आज रहा होता भावी कल

    माँ की करुणा उसे मिली होता जो निश्छल

     

    हे माँ तेरी कृपा मिले तव चरणन की धूल

    जलते आस्था दीप रहे हो आलोकित हो मूल

     

    माँ की हर पल याद रही मात रही हर अंग

    माँ का मस्तक हाथ रहा जीत गए हर जंग

     

    जब तक चलती सांस रहे ममता हो विश्वास

    अवचेतन भी तृप्त रहे मिट जाए संत्रास

     

    माँ की शक्ति साथ रही साथ रहा आशीष

    भय बाधा से मुक्त हुए निर्भीक हुई हर दिश

    माँ नदिया सम साथ रही सिंचित होते खेत

    हर जन बुझती प्यास रही शिव के दर्शन देत


     

रविवार, 24 सितंबर 2017

पूज्य कर्म पर मौन

राग द्वेष तव चित्त रहा, फिर कैसा उपवास
खुद के ही तुम पास रहो, खुद मे कर तू वास

निज कर्मो पर ध्यान धरो ,निज अवगुण को देख
घटी उमरिया जात रही , मिटी भाग्य की रेख
 
पूजा में तू लिप्त रहा, पूज्य कर्म पर मौन
शुध्द कर्म और आचरण ,धरता है अब कौन

सदाचार सद वृत्ति रहे, अवगुण कर दू त्याग
माता मन से दूर करो, लालच और अनुराग
 
 

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

बुझी हुई राख

जले हुए कोयले है ,बुझी हुई राख
मिटटी में मिल गई ,बची खुची साख

वैचारिक दायरो में कैद हुए मठ
 हार गई अच्छाई जीत गए शठ
आस्थाये जल गई  आशा हुई
ख़ाक
लूट गई लज्जा है ,कहा गई धाक 

उजड़े हुए आशियाने ,जल गए पंख
आस्तीन में छुप गए , दे गए डंक
उल्लू की बस्तिया है, झुकी हुई शाख
सूजे हुए चेहरे है , सूजी हुई आँख


जीवन की सरसता

सरलता रही है तरलता रही है
सरल और तरल बन सरिता बही है

जीवन की सरसता यही पर कही है
 प्रफुल्लित हुआ मन सहजता यही है

करम ही धरम है करम की बही है
 शिथिल सा रहा जो ईमारत ढही है

सदा वह मरा है जो जरा भी डरा है
निडरता जहाँ पर सफलता वही है

नरम है गरम है भरम ही भरम है
गगन से क्षितिज है इधर तो मही है

लगन है अगन है मगनमय जीवन है
ऋतु है शरद की कही अनकही है

शुक्रवार, 17 मार्च 2017

क्षणिकाएं


(1)
वे भ्रष्टाचार उन्मूलन प्रकोष्ठ के है पदाधिकारी
मिल जायेगी उनके पास
सभी भ्रष्ट अधिकारियो की जानकारी
जिसे दबाने के लिए लेते है वे रिश्वत भारी
(2)
उन्होंने बनाया युवा विचार मंच
युवा और विचारो के सिवाय
मिल जायेगे सब प्रपंच
(3)
हाथ से निकले हुए
धन के सूत्र है
इसलिए वे माता
सरस्वती के पुत्र है

गुरुवार, 16 मार्च 2017

प्यार की कमाई

अदाए मदमस्त तेरी मेरी यादो में सजती
दिन तो गुजर जाते है रात में तन्हाई डसती
तेरी चाहत से मैंने जो राहत पाई है
तेरे हाथो में थमा दी है मैंने प्यार की कश्ती

दिल के भीतर मैने सूरत तेरी बसाई है
मेरे दोसत तेरे प्यार मे सागर सी गहरायी है
बदन की खुशबु जो घुल गयी है मेरी साँसो मे
वो मेरे प्यार कि थोड़ी सी कमाई है

मौसम का तीखा मिजाज है
चाहत के नये अन्दाज है
आप कही भी रहो सनम
रहते हो हर पल मेरे पास है

तेरे आने कि खुशी ने जगा दी है आस
और जाने के ही गम से हो गये उदास
रहते हो हर पल मेरे आस-पास
हो जाती दूर उलझने मिलता जीने का साहस

बारिश का सुहाना मौसम कितना अनूठा है
तनाव भरी व्यस्तता में आनंद जीवन का रूठा है
प्रकृति की शरण में रहे घुमे फिरे भ्रमण करे
स्वास्थ्य का महामंत्र सच्चा है बाकि सब झूठा है















भाग्य के प्राची क्षितिज पर ,उग सूर्य आया है
चाँद सा चेहरा तेरा ,जब खिलखिलाया है

महकते मोगरे चम्पा चमेली, बाग़ उपवन में
मधुरता घुल गई है ,तेरी बोली से मेरे मन में
तुम्हारे रुप के कारण, हर पल मुस्कराया है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,चाँद सा चेहरा तेरा ,जब खिलखिलाया है
भाग्य के प्राची क्षितिज पर ,उग सूर्य आया है

मेरी यादो के भीतर ,सदा तेरा अहसास रहता है
तेरी ऑखो मे डूबकर ,मेरा तन मन पिघलता है
तुम्हारे नेह की गागर मे, सागर भी समाया है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,चाँद सा चेहरा तेरा ,जब खिलखिलाया है

सोमवार, 13 मार्च 2017

यहाँ रंग कही गहराया है

जीवन की आपा धापी में
                   अब वक्त कहा मिल पाता है 
फागुन की मस्ती छाती है
                  मन मन ही मन कुछ गाता है 

है सहज सरल से तरल नयन 
                   मौसम में रंगत आई है 
बच्चो की शक्ले  निखर रही 
                    बस्ती ने रौनक पाई है 
संसार सगो का मैला है 
                   इंसान अकेला ही जाता है 

यहाँ बदन गठीला मोहे मन 
                     सुंदरता सबको भाती है 
भीतर जो होती कोमलता 
                   ओझल होकर रह जाती है 
मानव मन का यह दोहरापन 
                      सौंदर्य कहा रख पाता है

यहाँ समय सदा ही सपनो सा
                     खुश किस्मत ने ही पाया है 
दुःख सह कर भी मद मस्ती का 
                        यहाँ रंग कही गहराया है 
सुख की है छाँव नहीं आती 
                     सुख सपनो का कब आता है

यह रंग बिरंगी दुनिया है 
                          रंगों में सब कुछ पाया है 
फागुन में बसते रंग रहे 
                        जिसे झूम झूम कर गाया है 
रंगों में मस्ती नाच रही 
                       यह रंग बहुत सिखलाता है

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

सपने रहे चकोर

सपनो  का आकाश रहा, सपने रहे बुलंद 
सपनो भी उन्मुक्त रहे, स्वप्न बसी हर गंध 

सपनो का चंदा रहा ,सपने रहे चकोर 
निस दिन सपने काट रहे, सपने क्षण के चोर 

स्वप्न सलौना वही रहा ,खुल गई निंदिया रैन 
प्रियतम नैना ढूँढ रहे, तन मन है बैचेन 

अपनों में क्यों व्यस्त रहा ,सपनो में मत जी 
सपनो में भी चिंतन कर, सपनो को तू पी

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

पुकारता तू आसमाँ

पुकारता तू आसमाँ 
निहारता तू भौर है 
मिला रवि से तेज है 
शशि ने हिलोर है 

है लक्ष्य पर बढ़े कदम 
क्षितिज का न छोर है 
समेट ले तू सारे गम 
लगा ले दम किनोर  है 

मिली विजय न राह पर
 जीवन मरण का दौर है 
ख़ुशी है किसके वास्ते
 ख़ुशी से मन विभौर है 

हुई क्यों आँख तेरी नम 
मिला नहीं तुझे सनम 
धरो चरण करो वरण 
 सफल न करता शोर है 

खुद ही से तू है हारता 
खुद ही पे तेरा जोर है 
तू ही जीवन संवारता 
भीतर तेरे ही ठौर है

सुहाता नहीं ये समा 
 अभी तो तू किशोर है 
सुबह से ले ले ताजगी 
 जगेगा पोर पोर है

सोमवार, 30 जनवरी 2017

रेत पर मिले काफिले है

रेतीला होता मरुथल, रेत  के ऊँचे टीले है 
रेतीली होती हवाये ,रेत  में चलकर खिले है 

रेत में तपती हवाये ,पस्त  होकर लब सिले है 
रेतीली होती है नदिया ,रेत से बनते किले है 

रेत  का उठता बवंडर ,रेत में बसता समंदर
रेत बिन रिक्तिम है दुनिया ,रेत से सपने मिले है 

रेत में होती है फिसलन ,होती विचलन पग जले है 
रेत के भीतर मिला जल ,कंठ तर जीवन पले  है 

रेत करती है निरोगी ,रेत पर रहता  है योगी 
रेतीले बिस्तर पर निंदिया, रेत पर मिले काफिले है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज