मंगलवार, 26 मार्च 2013

संशय ने हारी हर बाजी ,सुख सपनो का नवनीत रहा

यह कंठ वेदना लिख रहा, जीवन बाधा से सीख रहा 
ह्रदय का अंतर चींख रहा ,क्रोधित मन मुठ्ठी भींच रहा 

होली रंगों से खेल रही ,ईर्ष्या नफ़रत की बेल रही 
माता ममता उड़ेल रही ,सखीया अंखिया से खेल रही 
आँचल ने पोंछे  है आंसू  ,अनुभव आयु से जीत रहा 

चंचल लहरों में है हल चल  लहराती है बल खाती है 
वह नृत्य करे करती नखरे, तट से आकर टकराती है 
तट पे आकर मन से गाकर करुणा का लिखता गीत रहा 

महुए पे  मादक फुल रहे ,ढोलक मांदल से सूर बहे 
साँसों में बसती हो सजनी  रंगों में सब मशगुल रहे 
घूमता फिरता पूनम चन्दा  मन के आँगन में  दिख रहा 

सुविधा दुविधा की मूल रही तृष्णा आशाये झूल रही 
नित रंग बदलते है रिश्ते शंकाये थी निर्मूल रही 
संशय ने हारी हर बाजी ,सुख सपनो का नवनीत रहा  
 

सोमवार, 25 मार्च 2013

जल

जल की सरलता और तरलता प्रवाह देती है 
तृष्णा को तृप्ति देती है
 इसलिए जल की तरह सरल और तरल बनो 
जल समतल पर नहीं बहता जल समतल नहीं रहता 
असमतल धरातल पर जल सदा है बहता 
इसलिए जल की तरह विषमताओ में बहो 
विषमताओ के  विद्रूप को सहो 

गुरुवार, 21 मार्च 2013

रंगों की पिचकारी

ओझल हुई राहे तो संकरी होती है गलिया 
संकीर्णता छा गई  मुरझाई हुई  कलियाँ 

आस्थाए  आहत हुई पतझड़ भी आ गई 
मौसम ने ली करवट ,होली मन भा गई 
रंगों की पिचकारी फिसला है यह छलिया 

भीलो की टोली है, हाटों  में होली है 
महुए की मादकता ,रंगों ने घोली है 
महका है गोरा तन ,बहकी हुई पायलिया 

सोमवार, 18 मार्च 2013

दे दे कोई अपनापन दे दे कोई संबल

आँखों के आंसू है ,भावो का पावन  जल 
 झरता हुआ झरना बहता है कल -कल 

आदमी का आचरण कहा हुआ निश्छल 
राहे हुई  पथरीली नहीं हुई  समतल 

थके हुए सपनो के हाथो में थमा हल 
गुजरती रही जिंदगी गुजरतारहा  पल -पल 

जीवन में  अंधे मौड़ है हालात के दल -दल 
 आचमन करे मन  संकल्प हुए निर्बल 

हुई सुबह  कातिलाना  नहीं कही हल- चल 
दे दे कोई अपनापन दे दे कोई संबल 



प्रलय का परिचय

सिमटी हुई दूरिया 
 देश से देश की 
वेश की परिवेश 
नगर  से नगर की 
डगर से डगर 
सफ़र से ठांव की 
गाँव से गाँव की 
पेड़ से छाँव की 
सिमटी ही जा रही 
 संबंधो के दायरे
 संकीर्ण होते जा रहे 
यह देख अनजाना भय 
कचोटता है ह्रदय 
सोचता रिश्तो की यह सिकुडन 
कही शून्य में न समा जाए  
तब शून्य में प्रविष्ट समष्टि को 
विलुप्त होती सृष्टि को 
कहा होती सृष्टि को 
कहा जाएगा यही है यही है 
प्रलय का परिचय  

 

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज