रविवार, 31 जनवरी 2016

मानव सेवा का वन्दन है

सेवा का जिसमे भाव भरा 
करूणा का पाया चन्दन है
करुणा से पाई मानवता 
 मानव सेवा का वन्दन  है

तन दुर्बल होकर मरा मरा
 मन मूर्छित होकर डरा डरा
बचपन ने खोई कोमलता 
 फूटे सपनों के क्रंदन है

लिए  घाव गरीबी  हाथो मे
 बूढी माँ रहती लातो मे
झुग्गी रोती है रातो मे 
सपनों मे रहता नंदन  है 

सुख रहा सदा ही भावो में 
वह तृप्त रहा अभावो में
दुःख महलो में भी पलते है  
होते सुविधा में बंधन है



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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज