मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

बोझिल है आकाश


ऊँचे पर्वत मौन खड़े, जग में सीना तान 
इनसे नदिया नीर बहे, उदगम के स्थान

गहरी झील सी आँख भरी, बोझिल है आकाश
पर्वत टूट कर रोज गिरे, जंगल की है लाश

जितने ऊंचे आप रहे,उतने बड़े सवाल
थोड़ी सी है भूल रही, कितना रहा बवाल

बदली उनकी सोच रही , बदली उनकी चाल
ऊँचाई पर पंख लगे , हो गये वे वाचाल

जितना उनमे जोश रहा, उतने भूले होश
उतना ही आतंक करे, ऐसा जोश खरोश

दिखती दूर से एक नदी, दिखता है पाताल
मण्डवगढ़ की रूपमती , हरियाता एक ताल

महामारी में कौन लड़ा,कर लो तुम पड़ताल
सड़को पर है जाम लगा, वो करते हड़ताल

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 03 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज