सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

प्रवाह

प्रवाह गति का द्योतक है
प्रवाह का उज्जवल भावी है 

वर्तमान रोचक है
प्रवाह जल जीवन और पवन ने पाया है
प्रवाहित होकर जल नदिया और निर्झर बन पाया है
प्रवाहित जल में विद्युत ऊर्जा समाई है
वैचारिक प्रवाह ने ही अलख चिंतन की जगाई है
प्रवाह ही तो जीवन को नवीन दिशा दे पाता है
गहन निशा की उदासी में उल्लास का शशि जग -मगाता है
तरुणाई की ताकत और अनुभव ज्ञान भी प्रवाहित होते है
प्रवाहित जीवन को दिशा देकर बीज रचना के बोते है
दिशाए हमारे जीवन की दशा बदलती है
सही दिशा पाकर ही तो जिंदगी सम्हलती है
प्रवाह में जिंदगी पलती है
ज्योत आशा की जलती है
अभिलाषा की कलि विचारों के उपवन में खिलती है
इसलिए प्रवाह को प्रवाहित होने दो अपनी गति से
प्रवाह की सार्थकता है उत्त्थान और उन्नति से
प्रवाह से से मिलेगे सभी को हल
प्रवाह से प्रसारित होंगे पखेरू 

फैलायेगे पंख सजायेगे कल
प्रवाहित जल से है सिंचित भूमि 

लहलहाया मरुथल
प्रवाह चेतना का भाव है
जड़ता के घने वन  में सक्रियता का गाँव है

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

रावण के है पीठ


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राम शब्द मे ब्रह्म रमे,रामायण हरि धाम
हनुमद अमृत दीजिये,जपे राम का नाम ।।१।।

रावण बावन फीट हुआ ,हुई व्यवस्था ढीठ
राम राज तो नही मिला,रावण के है पीठ।।२।

मेघनाद सा पुत्र कहाँ ,कहाँ  सिय सा प्रण
रावण को भी मिले यहाँ  ,राम क्रपा के क्षण ।।३।।

अनुचर तो सब विचर रहे,लुप्त समर्पण भाव
कलपुर्जो का युग रहा,कलयुग के है गाँव ।।४।।

धरती भी बेहाल हुई,यह दंगो का खैल
संग रावण के जले यहाँ ,जल जंगल और रेल।।५।।

सीता सी मन आस रही,साँस  बसे रघुवीर
रहे लक्ष्य भी लक्ष्मण सा,तो जगती तकदीर ।।६।।

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

कृष्ण कृपा मन राखिये



वचन व्यक्त विश्वास है,वचन रहा है न्यास
        दुष्ट वचन दुख देत रहा,सत्य वचन मे व्यास      ||1||

वचन वाक्य विन्यास नही,वचन कर्म है धर्म
          तृप्त  हुआ वचनाम्रत से ,साधक कर सत्कर्म      ||2||

वचन पुरुष श्रीराम रहे ,वचन वीर घनश्याम
         बच नही पाया दुर्वचनो से,प्यारा सा इन्सान       ||3||

सद वचनों में गुण भरा ,प्रवचन सुख नवनीत
        सन्त ह्रदय सा राखिये,रख मन घट मे प्रीत   ||4||

कृष्णा  की जो लाज रखे ,कृष्ण वचन सा होय
         कृष्ण कृपा मन राखिये , कृष्ण वचन को ढोय    ||5||

वचन विराजे ब्रह्म देव ,वचन विराजे राम
      वचनो पर जो प्राण तजे ,राम पिता गये धाम      ||6||




रविवार, 7 अक्तूबर 2012

आत्मीयता

आत्मीयता की उड़ान ऊँची उड़ान है
आत्मीयता में आत्मा का रसास्वादन है
कान्हा की प्रीत, राधा का स्नेह
नील कंठ का विषपान है
आत्मीयता में आत्मा का वंदन है
मोह के माथे पर नेह का चन्दन है
आत्मा का परमात्मा से स्नेहिल बंधन है
आत्मीयता जहां होती है
वहा स्वादिष्ट लगती सूखी रोटी है
आत्मीयता के बिना भावो  की तृप्ति कहा होती है
आत्मीयता शबरी के झूठे बैर है
कान्हा के सम्मुख कैलो के छिलको में
विदुर सवा सेर है
आत्मीयता निराशा में जीवन की आशा है
आत्मज्ञान है सच्चे ज्ञान की पिपासा है
प्रियतम से मिलने से मिलने की उत्कट अभिलाषा है
इसलिए जिसे भी चाहो उसे आत्मा में बसाओ
आत्मा को आत्मा के करीब ले आओ
असंख्य आत्माओं का समूह ही तो होता परमात्मा है
कोटि कर्मो के बंधन से ही निकलती जीवात्मा है
आत्मीयता की स्थापना से  ही तो सिध्दी होती है
आत्मीय संबंधो की कीर्ति और प्रसिध्दी होती है
जीवन में सिध्दी और प्रसिध्दी का होना अनिवार्य है
आत्मीयता बनाए रखे
आत्मीय सम्बन्ध स्वीकार्य है 

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

मरी हुई चेतना हवा हुई खिलाफ है

उमंग मे जीवन है,तरंग मे जीवन है
रसो मे जीवन है,नसो मे जीवन है

काया मे छाया है,छाया मे माया है
माया से पाया है,प्यारा गीत गाया है
तपन है थकन है गीतों की छूअन है 

कही कही सुख है यथार्थ कुरूप है
नया नया रूप है हुई छाँव धूप है
अगन है दहन है थमी हुई पवन है

विरह है मिलाप है रुदन है विलाप है
मरी हुई चेतना हवा हुई खिलाफ है
दमन है नमन है लुटा हुआ चमन है



शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

भाव करे मन से सत्कार

शर्म भरी गालो की लाली
मीठी गाली मीठा प्यार
सज नही पाया बिन सजना के
सजनी का कोमल श्रंगार

होठो पर मुस्कान रहे तो
पलको पर ठहरा हो प्यार
गहरे बालो मे बिखरा है
मादक,मस्ती का विस्तार
सोच रही तन-मन यह धडकन
मिलने के कब हो आसार

धवल चाँदनी  चन्दा देखे
नवल तृषा देखे उस पार
निशा तो नित ही है होना
कमल चन्द्रमा ले आकार
पायलिया की रून-झुन सुन कर
  गूंज उठी मन मे झंकार

बादल से बरसे है नयना
तरस रहे मन के सुख चैना
सरिता तट केवट आ पहुचा,
जल बिन नैया कैसे बहना
उतर रही है भावो की टोली,
भाव करे मन से सत्कार

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज