शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

ताकते प्रतिबिम्ब है

झाँकते हर और चेहरे
 ताकते प्रतिबिम्ब है 
रास्ते जल से भरे है 
 दृश्य होने भिन्न है 

दिखती है दिव्यता तो 
प्राची की अरुणाई में 
ओज और ऊर्जा पवन में 
उम्र की तरुणाई में 
रह गई परछाईया है 
वक्त के पदचिन्ह है 

दृष्टिगत होते क्षितिज में 
कल्पना के रंग है 
उम्र भर उड़ती  रही है
लक्ष्य की पतंग है 
वृहद व्यथा की कथा है 
मन क्यों होता खिन्न है


बुधवार, 16 सितंबर 2015

मानव बनता है दानव

बजता डमरू महाकाल का 
नाच रहे नंदी भैरव 
नर से होते नारायण है 
अर्जुन के केशव माधव 

ऊँचे पर्वत गहरी नदिया
नभ पर पंछी की कलरव
हलचल होती मन के भीतर
सृजन स्वर उपजे अभिनव
झरते झरने सात समंदर 
गहरे जीवन के अनुभव 
अंधड़ ,पतझड़ ,बारिश की झड़,
मौसम होते असंभव 

ताल सरोवर भूमि  उर्वर 
गिरता उठता है शैशव 
धर्म कर्म की बात पुरानी 
नया पुराना होता भव 

जीवन से होता परिचय तो 
जीवन की लीला है नव 
जीवन ले ले कुदरत खेले 
विपदायें भीषण तांडव 

कटते  जंगल होते दंगल 
मानव बनता  है दानव 
विस्फोटक की खेप पुरानी 
क्षत विक्षत बिखरे है शव

सोमवार, 14 सितंबर 2015

पुष्प से माला पिरोई

भाव सृजन की धरा  है 
लेखनी मन  में डुबोई 
आत्मीयता ह्रदय में
 प्यार की आशा संजोई 
चित्त  में चित्तचोर रहता
 शब्दहीन संवाद करता 
श्याम ने पाई न राधा
 बाधाये जाने न कोई 


हाथो में मेहंदी रची ज्यो 
भक्ति प्रीती में भिंगोई 
श्याम की बंशी बजी तो 
 मीरा राधा सी है खोई 
गंध और सुगंध पाने 
भवरे होते   है  दीवाने 
पंख  सपनो से जुड़े है 
पुष्प  से माला पिरोई

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज