शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

नेता अभिनेता

हर इन्सान के भीतर रहता एक अभिनेता है
व्यक्तित्व की गहराईयो मे छुपा हुआ एक नेता है
वह जो कुछ दिखाना चाहता है,दिखाता है
सुनाना चाहता है,सुनाता है
व्यक्ति कुछ भाव बताता ,बहुत कुछ छुपाता है
अच्छाईयो को भुलाता है ,बुराईयो को बुला लेता है

कुछ इन्सान जो होते है अच्छे
दिल केभोले ,कम बोले ,होते सच्चे
करते नही स्वांग ,छल छद्म से जो बचे
भीतर की भावनाये उनके चेहरे पर दिखाई देती है
प्रतिध्वनिया भीतर की ठीक-ठीक बाहर सुनाई देती है

उन्हे अभिनय कहा रास आता है
मन कर्म वचन मे वह भेद कहा कर पाता है
महर्षि दयानंद की तरह वह जीवन मे कई बार विषाक्त प्याले पी जाता है
ऐसा व्यक्ति सच्चिदानंद विश्वानंद की अनुभूतियो से मुस्कराता है
और  अदभुत दैवीय मुस्कान से ही शक्ति पाता है
अनुपम अलौकिक शक्तियो के सहारे ही मोक्ष मार्ग पर जाता है

इसलिये संत महंत पीर फकीर कहते है सहज सरल बनो
नेता और अभिनेता की तरह कृत्रिमता के आवरण मत बुनो
कृत्रिम  व्यवहार से कोई व्यक्ति कहा महान बना है
सहज और सरल स्वभाव से ही समस्त विकार हुये फना है
 

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

निर्बल होता क्रुध्द

द्वापर में बल भद्र हुए ,शेष नाग अवतार
हे धरणी-धर नमो नम,हल का  दे आधार 

हल में रहता हल है ,हल देता है फल
क्यों तू हल को छोड़ रहा ,हल बिन तू निर्बल 

बल होना पर्याप्त नहीं ,बल शालीन अनमोल
 
शालीनता बिन  बल रहा ,यह तन मन बेडौल 

बल में रहता युध्द नहीं ,बल रहता है शुध्द
शुध्द बुध्द बलराम रहे ,निर्बल होता क्रुध्द 

हल बैलो में कर्म रहा ,गो गीता में धर्म
धर्म कर्म बिन शून्य रहा ,रहा धर्म में मर्म 

बल बिन जीवन व्यर्थ रहा ,रहे व्यर्थ उपदेश
निर्बल का दल क्या करे ,छोड़े मृग दल देश

बुधवार, 15 अगस्त 2012

तीन रंगो मे भरा रहा,तीन धर्मो का प्यार

                                       

        




शासकीय यह पर्व नही ,जन -जन का त्यौहार 
तीन रंगो मे भरा रहा,तीन धर्मो का प्यार

राष्ट्र धर्म मे रूची रहे ,राष्ट्र हित हो कर्म
 खुशिया जन मन बसी रहे ,आजादी का मर्म

आजादी बिन मोल नही ,आजादी अनमोल
आजादी  अक्षुण्ण रहे ,झट-पट आँखे खोल

स्व हित मे ही लिप्त रहा,पर हित मुंह तो खोल
स्व तंत्र शिथिल हुआ ,स्व का तंत्र टटोल
 
आजादी  अभिशाप नही ,आजादी वरदान
निज का शासन है निज पर,जन मन गण का गान

 अनुशासित ही सुखी रहे,शासित शोषीत दुखी सदा
जो शासन से सुखी रहे, मूढ़  जड़ अनपढ़ रहे गधा
 

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

तेरी बाते मेरी बाते

तेरी बाते मेरी बाते ,बातो से गम हम हर पाते
बातो की होती बरसाते ,उजले दिन है गहरी राते  

बाते मन के भेद है खोले ,बातो से रिश्ते है बोले
सुख दुःख बांटे नहीं सन्नाटे ,बाते मीठे बोल है घोले
गुजरे दिन है गुजरी राते ,बातो से होती मुलाकाते 

बाते तो तोलो और बोलो गहरा सोचो भाव टटोलो
कानो में मिश्री को घोलो ,मीठे होकर सबके हो लो
बातूनी को मिलती लाते ,बातो की पूंजी हम खाते

बाते करते हर जन टहला ,बातो से है  यह मन बहला
तन्हा जीवन कैसे सम्हला ,देती बाते प्यार है पगला
बातो से सौदे हो पाते ,आते जाते कर लो बाते


कड़वी बाते ,मीठी बाते ,सीधी बाते ,टेड़ी बाते  
बाते से है हम बतियाते, बातो से जुड़ जाते नाते
 बातो से सब कुछ मनवाते, बातो बातो में रह जाते 



 

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

रक्षा बंधन

जीवन में अनगिन है बंधन ,बंधन में भावो का चन्दन  ,
बहनों का भावुक अभिनन्दन ,रक्षा बंधन रक्षा बंधन

देवो को हम ह्रदय बसाए ,रक्षित कर लो दसो दिशाए
भाई चारा का जयकारा भाई चारा हम ले आये
माथे पर कंकुम है चन्दन ,बहनों का रोके हम क्रंदन
रक्षा बंधन रक्षा बंधन.......
बिन बंधन के मन नहीं जुड़ते,बंधमुक्त हो खग नभ उड़ते
ईश्वर का आस्था से वंदन ,बिन वंदन मन ही मन कुड़ते
भावो का भावो से बंधन ,सांसो से सांसो का बंधन 
रक्षा बंधन रक्षा बंधन.......


बुधवार, 1 अगस्त 2012

छा गई है क्यों उदासी

मुस्कराहट छीन गई है मेरे अपने इस शहर से
छा गई है क्यों उदासी ,आंधीया आई किधर से

गैरो को हम दोष क्यों दे ,टूटते रिश्ते बिखर के
आचमन होते लहू के ,अब घृणा आई संवर के
टूटती ही जा रही है, मानवीयता भीतर से

दंगो ने है घर जलाए ,दंगे सपनो को रुलाये
माँ की ममता रो रही है ,बेटो को कैसे सुलाए
भीड़ में तो भेडिये है ,लाशें आई है जिधर से

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज