गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

आई करवा चौथ है ,बीत गई है तीज

प्यारा सा संसार रहे, प्यार बसे  हर बोल 
प्रीती और अनुराग लिए ,करवा व्रत को खोल 

मन व्यापे न आग कही ,तन  व्यापे न दोष 
पानी के दो घूँट में ,व्यापत  है संतोष 

मन न विष का वास रहे, प्रीती  हो  अटूट 
पी ले करवा चौथ पर, पानी के दो घूँट 

सूख गया गल कंठ अब ,सजना समझो पीर 
प्यारे से परिवार में ,मत खींचो लकीर 

सजनी तेरे प्यार में ,चंदा क्या है चीज 
आई करवा चौथ है ,बीत गई है तीज

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

झोपड़ी खपरैल है

छत  पर छप्पर कवेलू ,झोपड़ी खपरैल  है 
कच्ची है पर सच्ची रहे ,फैली रेलम पेल है 

झाड़ और झुरमुट खड़े है ,टेडी मेडी मेढ़  है 
आती जाती बैल गाडी ,हिलते डुलते  पेड़ है 
माटी के बनते खिलौने ,काठ बनती रेल है 

हुई अकड़ती एक ककड़ी ,नन्हा सा एक झाड़ है 
देशी बोली में ठिठोली ,अम्मा देती लाड़ है 
हल को धरता है हलधर,  हीन हिनाते बैल है 

गाँवों में होता है जीवन ,सीधे सच्चे गाँव है 
खेतो से चल कर निकलते ,खुर दरे से पाँव है
खेती में होता परिश्रम ,होती नहीं वह खेल  है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज