Srijan
बुधवार, 9 जुलाई 2025
मंगलवार, 8 जुलाई 2025
सोमवार, 28 अप्रैल 2025
अपनो को पाए है
करुणा और क्रंदन के
गीत यहां आए है
सिसकती हुई सांसे है
रुदन करती मांए है
दुल्हन की मेहंदी तक
अभी तक सूख न पाई
क्षत विक्षत लाशों में
अपनो को पाए है
शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025
सृजन के स्वर
सृजन की असीम संभावनाएं होती है, सृजन का अनंत क्षितिज होता है ,सृजन के विविध आयाम होते है, सृजन संसाधनों या किसी विशेष परिवेश का मोहताज नहीं होता l सृजन के स्वर वहा से निकलते है जहा संवेदनाएं रहा करती हैl व्यक्ति के हृदय के भीतर करुणा आद्रता सौहार्दता जैसी निर्मल भावनाओं की सरिताये बहा करती है l सृजन शील मन केवल अभिव्यक्ति के अवसर की तलाश करता है वह अपनी संवेदनाओं के बल पर अपनी पीड़ा को ही नहीं समाज की पीड़ा को गाता है l
डॉ प्रकाश उपाध्याय "क्षितिज "की कृति "सृजन के स्वर* सृजन शीलता के अदभुत शिल्प और सवेदनाओं का संग्रह है l इस संग्रह में कुछ रचनाएं गीत के शिल्प में तो कुछ रचनाएं मुक्तक के शिल्प में है , इस संग्रह में कवि ने प्रेम को परिभाषित भी किया है तो जीवन संगिनी की जीवन में सार्थकता को भी रेखांकित किया है l
डॉ प्रकाश उपाध्याय संगीत के क्षेत्र में भी पारंगत है इसलिए राम पर लिखा गया गीत भाव भाषा के धरातल पर मधुरता की अनुभूति भी देता है l माता के साथ पिता पर लिखी गई कविताएं हमारी बुजुर्ग पीढ़ी के प्रति श्रध्दा और सेवा के भाव प्रतिबिम्बित करती है l
सृजन के स्वर में जब कवि यह कहता है कि
"वो कहती मै गीतों में शृंगार नहीं ला पाता हूं
तुम कहते हो कविता में अंगार उगलने जाता हूं
तो लगता है कवि वर्तमान में बिखरे परिवेश की विद्रूपता से क्षुब्ध है l वह कृत्रिम रूप से श्रृंगार को स्वीकार नहीं करता बल्कि व्यवस्था और वर्तमान के सामाजिक अवस्था के प्रति अपना आक्रोश प्रकट करता है l
सृजन स्वर में कवि अपने सपनों से ही नहीं अपनी जड़ों से भी जुड़ा है इसलिए कभी वह रचनाओं के माध्यम से वह बीज को याद करता है तो कभी शहर की स्मृतियों में खो जाता है l
डॉ प्रकाश उपाध्याय चिकित्सा में क्षेत्र रहे है l चिकित्सक के रूप कई दशकों तक उन्होंने सेवाएं दी है l समाज की पीड़ा को उन्होंने जितनी निकटता से देखा है , वह पीड़ा भी कृति में मुखरित हुई है l
प्रयोगधर्मिता भी कृति की विशेषता है कवि ने जहा नई कविता के शिल्प रचनाएं लिखी है तो उन कविताओं में भाषा और भाव के प्रवाह को रुकने नहीं दिया है l उन कविताओं में भाव और भाषा की तरलता सरिता की तरह बही है
गर्मी पर गीत
सूरज का चढ़ता है पारा
नभ में रहता चांद सितारा
गर्मी का यह खेल रहा है
यह जग मौसम झेल रहा है
किस्मत रूठती एक बेचारा
बहा पसीना खारा खारा
जीवन का हर ताप सहा है
मीठा जल अब यहां कहा है
ढूंढ लिया है पनघट सारा
मिली कही न जल की धारा
तपती धरती कहा बिछौना
तपता है घर का हर कौना
कही दुखो की लिखी ईबारत
खुशियों का कही लगता नारा
गर्मी का जब मौसम आता
पतझड़ भी है तब इतराता
पौरुष की लगती जयकारा
मानव में फिर साहस पधारा
रविवार, 6 अप्रैल 2025
जपे राम हर पल
दीपक मन की पीर हरे
हर ले असत तिमिर
रोशन वह ईमान करे
मजबूत करे जमीर
पग पग पर संघर्ष करे
सत्य करे न शोर
वह मांगे कुछ और नहीं
मांगे मन की भोर
मन के राजा राम रहे
वे दीन के है बल
यह मन साकेत धाम रहे
जपे राम हर पल
शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025
छंदों पर प्रतिबंध है
खुली नहीं खिड़की
दरवाजे बन्द है
जीवन में बाधाएं
किसको पसन्द है
कालिख पुते चेहरे
हुए अब गहरे है
गद्य हुए मुखरित
छंदों पर प्रतिबंध है
मिली जूली भाषाएं
आवाजे कांपती है
अनुभूति आदमी की
शब्दों को भांपती है
टूटी हुई आशाएं
अभिलाषाएं मौन है
जीवन की जटिलताएं
क्षमताएं नापती है
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जीवन में खुश रहना रखना मुस्कान सच मुच में कर्मों से होतीं की पहचान हृदय में रख लेना करुणा और पीर करुणा में मानवता होते भग...