सोमवार, 29 दिसंबर 2014

उम्मीदे कुछ और है

मार्ग में संघर्ष है
 संघर्ष के कई दौर है 
संघर्ष में उत्कर्ष है 
उत्कर्ष का नहीं छोर है 
राह में कांटे बिछाये
 मुश्किलें कितनी भी आये 
मौत भी न जीत पाये 
उम्मीदे कुछ और है 

हर खुशी दुःख से बड़ी है
मुश्किलो से वह लड़ी है 
लौट आओ उम्मीदे तुम 
मंजिले चौखट खड़ी  है 
आज के भीतर रहा कल 
अंकुरित बीज फिर बना फल 
हर प्रतीक्षा है परीक्षा 
यहाँ परीक्षा की झड़ी  है

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

जन जन में खुशिया छाई है

लोक अदालत आई है ,जन जन में खुशिया छाई है 
कर लो बहना राजीनामा ,प्रेम सुधा सुख दाई है

सेवा ही संकल्प हमारा ,सेवा ही अभियान है 
न्याय दान ही महादान है निर्धन का सम्मान है 
न्याय शुल्क से पा लो मुक्ति, न्याय भागीरथी आई है 

मत भेदो  को दूर कर प्यारे ,नवयुग का आव्हान है 
प्री लिटिगेशन प्री बार्गेनिंग ,यह विधि का वरदान है 
विधि है मूर्ति विधि से पूर्ति ,हर मुश्किल हट पाई है

सोमवार, 3 नवंबर 2014

भाव के नहीं ईख है

जिंदगी है धार नदिया  है 
दर्द है तकलीफ है 
हार तो मिलती रही है 
जीत में कहा सीख है 
चाहतो के मिल रहे शव
,राहते  मिलती नहीं है 
प्यार की तुलसी है झुलसी 
नहीं वक्त की मिली भीख है

हर तरफ चिंगारियाँ है 
किलकारियाँ है चीख है 
प्यास ठहरी अधबुझी है
फिर मिली कालिख है
विष घोले  है सपोले  
होले  होले मन टटोले
नीम करेले है कसैले 
भाव के नहीं ईख है

शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

जीवन गीता श्लोक हो

घर आँगन में दीप  जला लो ,ह्रदय में आलोक हो 
उजियारे से प्रीत लगा लो ,मन  निर्भय अशोक हो 

जग जननी माँ दुर्गा लक्ष्मी ,देती यश धन बल है 
गुणों से पूजित हो जाते ,गुण  बिन सब निष्फल है
गुण  को पा लो स्वप्न सजा लो ,धरा स्वर्ग का लोक हो 

ज्योति से होता उजियारा, ज्योतिर्मय जगदीश है 
ज्योतिर्मय जग मग आशाये ,ज्योति का आशीष है 
चमक दमक दीपो की ज्योति ,जीवन गीता श्लोक हो

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

दीवाली के दीप जले है, दीपो का त्यौहार है

दीवाली के दीप  जले है, दीपो का त्यौहार है 
मिली रोशनी अंधियारे को ,खुशियो की बौछार है 

मिटटी से बन जाता सब कुछ, माटी करती  प्यार है 
मिटटी के दीपक कर देते ,धरती का श्रृंगार है 
मिटटी से ही शिल्प ढला  है ,शिल्पी का  औजार है 

गौरी की छम छम पायलिया , बैलो के बजते घुँघरू 
रंगो से सजती दीवारे ,मस्ती की डम डम  डमरू 
दीपक सा जग -मग हो तन मन रोशन हर दीवार है 

कर्मो का यह दीप  पर्व है, करम धरम का मर्म है 
शुभ कर्मों  का सुफल होगा ,नीच कर्म से शर्म है 
बिना कर्म के आज नहीं है ,सपने हो बेकार है

सोमवार, 20 अक्तूबर 2014

दिवाली है

अमीर हो या गरीब 
उजला धन हो तो दिवाली है 
जन निर्धन हो या सम्पन्न 
मन प्रसन्न हो तो दिवाली है 
ब्लैक मनी नहीं है हनी 
व्यवस्था भ्रष्ट हो तो जिंदगी काली है 
प्रशासन सख्त हो  कामकाज में
 व्यस्त हो तो दिवाली है 
जीवन हरा भरा हो 
अपराधी  डरा  डरा  हो तो दिवाली है
 सेवा  ही धाम हो 
भक्ति निष्काम हो तो खुशहाली है 
धड़कन में राम हो
 मन में विश्राम हो तो दिवाली है

रविवार, 24 अगस्त 2014

धर्म अंधी आस्था नहीं भगवान विष्णु का चक्र सुदर्शन है

धर्म जीना सीखाता है 
धर्म मारना नहीं मरना  सीखाता है 
पीडितो असहायों की सेवा  करना , पीड़ा हरना 
दुःख दूर करना सीखाता है 


धर्म माया नहीं छाया है
 धर्म वही  है जो सदाचार के पथ चल आया  है
धर्म उजाले का सूरज है 
अन्धेरा ढला  तो दिया है 
धर्म के पथ पर चल कर 
सुकरात और दयानंद ने जहर को पीया है 

धर्म कर्म से विमुख कभी नहीं रहा है 
कर्म को धर्म गीता में भगवन ने कहा है 
धन्य वे है जो धर्म निभा कर कर्मवीर हुए है 
सच पूछो तो वे कर्म वीर ही नहीं धर्म वीर हुए है 

धर्म वह है जो निर्दोष के प्राण बचाता है 
एक अबला की इज्जत और सज्जनता का मान बचाता है 
झूठ और मक्कारी को नंगा कर सच्चाई और अच्छाई को गले लगाता है 
धरम ईमानदारी और बेईमानी को अपने सही मुकाम तक पहुँचाता है 
धर्म अंधी आस्था नहीं भगवान विष्णु का चक्र सुदर्शन है 
सच्चाई की ताकत में ही धर्म है भगवन का होता दर्शन है

शनिवार, 2 अगस्त 2014

मुसीबतो का करते रहे इन्तजार है

उन्हें मुसीबतो से कम और सुविधाओ से बहुत प्यार है 
हम उपाय खोज कर मुसीबतो का  करते रहे इन्तजार है
उनके लिए मुसीबतो का आना एक खौफ है 
मुश्किलो से होती रही हमारी नोक झोक है 
जीवन में मुसीबतो का सिलसिला है 
मुसीबतो के सहारे ही तो हमें यह सब कुछ मिला है 
जीवन के समंदर में कही मीठा तो कही खारा जल है 
करते रहो लहरो को पार 
क्षितिज के उस पार उजला  कल है 
उनकी कथनी और करनी में रहा बहुत भेद है 
मनसा वाचा कर्मणा से हम एक रहे 
तो जीवन गीता उपनिषद वेद है 
परिश्रम के पसीने से जिसने कर्मो को सींचा है 
हर संकल्प में बल है
 हर शब्द एक ब्रह्म और वाक्य उसकी ऋचा है

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

हे !माधव केशव

काया  भी अब क्षीण हुई ,मिटटी हो गया शव 
अर्जुन सा मन दीजिये, हे !माधव केशव 

राधा सी अब  प्रीत नहीं ,नहीं उध्दव सा ज्ञान 
भव् बंधन से मुक्त करे ,शिव जी की मुस्कान 




शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

शिव सतयुग निर्माण

चिंता चित से हटी रहे ,चित में हो भगवान 
विषपायी शिव पूज्य रहे ,कर शिव का गुणगान 

शिव पूजन है सहज सरल , शिव व्यापे अभिषेक 
शिव की शक्ति जानिये, शिव शक्ति है एक 

 सावन पावन  हरा भरा, बारिश की रिम झिम 
 शिव  जल  का अभियान है, शिव शंकर है हिम 

शिव जी सबके परम पिता ,हम बालक अनजान 
बालक सा मन  चाहिए चाहिये ,मासूम सी मुस्कान 

शिव व्रत और उपवास नहीं ,शिव है जग कल्याण 
शिव सज्जन के साथ रहे ,शिव सतयुग निर्माण 


गुरुवार, 17 जुलाई 2014

परमानंद

व्यक्ति प्रतीक हो या स्थान
 उसे पवित्र  बना दो पर 
इतना पवित्र बना भी मत दो कि
 उनसे  दुरी स्थापित हो जाए 
उनमे परायापन लगने  लगे
किसी व्यक्ति विशेष को 
इतना पूजनीय आदरणीय मत बना दो कि 
उससे हम अनुकरण न कर सके 
और हम उसे सिर्फ पूजते रहे 
स्वयं को इतना श्रेष्ठ मत मान लो 
कि  हम जन सामान्य से दूर हो जाए
ऐसी पवित्रता ऐसा पूज्य होना ऐसी श्रेष्ठता 
जो आराध्य को साधक से दूर कर दे 
और स्वयं को जन सामान्य को दूर
निरर्थक है मिथ्या है पाखण्ड से परिपूर्ण है 
हमें तो ऐसी सहजता चाहिए 
और ईष्ट में ऐसी सरलता चाहिए 
कि चहु और अनुभूति होती रहे ईष्ट कि
और हम डूब जाए परमानंद में

शनिवार, 21 जून 2014

बदले मन के भाव है

फूल बिखेरे गुलमोहर ने  , गर्म हो रही छाव है 
 ताप दे रही है दोपहरिया , भींग रहे सिर पाँव है 

रस्ते टेड़े  बदहाली के ,पथ पर उड़ती धूल  है 
मानसून में होती  देरी ,शायद हो गई भूल है
जल बिन जीवन कब होता है निर्जन होते गाँव है 

लौट रही न अब यह गर्मी ,सूखा थल से जल है
आज कटे है सुन्दर उपवन ,
नष्ट हो रहा कल है
हे ! बादल तुम क्यों है बदले? बदले मन के भाव है 

सूख गए है घट, तट, पनघट ,रिक्त हुए सब कुण्ड है 
जल बूंदो को तरसे खग दल ,भटक रहे चहु झुण्ड है 
कोयलिया फिर भी है बोली ,कौए  करते कांव  है

 
 
 




 

शुक्रवार, 20 जून 2014

पेड़ और पिता

पेड़ और पिता में क्या अंतर है ?
पेड़ भी पिता के समान छाया देता है 
पेड़ की टहनियों पर पंछी आकर थकान मिटाते है 
पिता के पास पुत्र आश्रय पाकर  अरमान सजाते है 
सरंक्षण पाकर अभय दान पाते है 
पेड़ की जड़े  बहुत गहरी होती है 
पिता की सोच अनुभव से भरी होती है 
पेड़ से पंछी और मानव मीठे फल पाते है 
गिरने वाली लकडियो से हम भोजन पकाते है 
पेड़ की छाया  देखते ही आशाये जग मगाती है 
पसीने से लथ -पथ नाजुक सी देह राहत पाती है 
इसलिए पिता भी पेड़ के बीच कोई अंतर नहीं है 
पेड़ और पिता दोनों हमारे पूज्य है 
फिर भी हम दोनों के अस्तित्व को मिटाने पर क्यों तुले है 
हुई ढीली  संस्कारो की जड़े और वृध्दाश्रम क्यों खुले है 

रविवार, 11 मई 2014

समझो वह प्यारी माता है

करुणा दीपक है द्वार धरा 
ज़ीवन मे जिसके प्यार भरा 
हम जिसे देख कर हर्षाये 
इस जग का सारा सुख पाये 
प्यारा से जिससे नाता है
 समझो वह प्यारी माता है 

तन मन का जिससे बन्धन है 
चरणोँ की  रज मे चन्दन है 
बेटे का मन जो पढ़ पाई 
वह कठिन वक्त से लड़ आई 
दिल  दर्द उसी  का पाता है 
समझो वह प्यारी माता है 

खुशिया आँखों मे छलकाए 
दुख देखे आँसु बरसाए 
मन जिसके प्यार मे पागल है 
जीवन मे पाया सम्बल है 
गीत उसके ही गुण गाता है 
समझो वह प्यारी माता है 

हम  हँस कर खेले बड़े हुये
मिटटी मे लथ-पथ खड़े हुये
आँचल से ममता बरसाए
होकर वत्सल माँ बहलाये
नटखट बचपन इतराता है
समझो वह प्यारी माता है 


मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

जो नजदीक है दूर हुए ,दूर रहते वो पास

रिश्तो का इतिहास रहा ,रिश्तो का  भू -गोल 
रिश्ते लाते प्रीत रहे ,रिश्ते मीठे बोल 

रिश्तो की  है  रीत रही ,रिश्तो के रिवाज 
रिश्ते नाते टूट रहे ,निकली न आवाज 

भावो से जो  रिक्त रहा रिश्तो से अनजान 
रिश्तो की गहराई को ,मानव  तू पहचान 

खूशबू से भरपूर रहा ,रिश्तों का अहसास 
जो नजदीक है दूर हुए ,दूर रहते वो पास 

रिश्तो से कुछ आस रही , मन  लगती है  ठेस 
अपनो से तो पीर मिली , प्रीत मिली  परदेस

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

संतुष्टि तो मन की अवस्था है

संतुष्टि का कोई पैमाना नहीं होता
कोई व्यक्ति एक बूँद पाकर संतुष्ट हो सकता है
कोई व्यक्ति समुन्दर पाकर संतुष्ट नहीं होता
संतुष्टि तो मन की अवस्था है
असंतोष की कोई सीमा नहीं होती
असंतुष्ट व्यक्ति को जितना मिल जाय कम है
असंतुष्ट व्यक्ति को संतुष्ट करना 
बहुत मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
असंतुष्ट व्यक्ति का साथ होता बहुत दुखदायी है
संतोषी व्यक्ति ने सदा ही खुशिया बरसाई है
संतुष्ट वह व्यक्ति है जो भीतर जो संत है
भीतर की सत्ता की संतुष्टि का स्तर अनंत है
संतुष्ट मीरा थी 
जिसने गरल को पीया तो अमृत पाया है
संतुष्ट संत रसखान थे 
जिन्होंने धर्म को पूजा नहीं जिया है
इसलिए  सदा संतुष्ट रहो
असंतुष्ट रह कर कभी नहीं निकृष्ट और दुष्ट रहो

शनिवार, 22 मार्च 2014

पेड़ बचा लो छाया पा लो

दिल में दर्द भरा तो छलका 
आँखों में भावो का जल 
नदिया निर्झर की धाराये
बहती जाती है कल -कल 

 बारिश छम छम नाच रही है
 बाँध रखे घूँघरु पायल 
 चमकी बिजली  गिरते ओले
  नभ पर गरजे है बादल        
 मौसम की होती मनमानी 
उठती लहरो की हल चल 
 मीठी वाणी कोयल रानी 
भींगी राहे है खग -दल 

मरुथल मांग रहा है पानी 
बालू रेती हुई पागल 
घायल साँसे वृक्ष कँटीले 
दुर्गम  राहे बिछड़ा दल 
फाग अनूठे मस्त सुरीले
मस्त हवाये हुई चंचल 
उजड़े वन तो व्याकुल जीवन 
जंगल जंगल है दल दल 

चींटी मकड़ी तितली रानी
 में भी होता अतुलित बल 
प्यासे को पानी  की बूंदे 
बूँद दे रही कुछ  सम्बल
पेड़ बचा लो छाया पा लो 
निखरा होगा भावी कल 
बारिश से नदिया पूर होगी 
 होगा मीठा निर्मल जल 

रविवार, 16 मार्च 2014

बिन रंग के जीवन मरा


छंद से जीवन भरा ,
आनंद से जीवन भरा 
स्नेह का यह कन्द ले लो 
सदभावना  दे दो ज़रा 

चाँदनी मधुकामनी 
अब दे रही खुशबू हमें
तुम चले  हो छोड़ कर 
मुह मोड़कर धड़कन थमे
हम बुलाये तुम  न आये
सोच कर कुछ मन डरा 

 होलिका बन जल रही है 
 दस दिशाए  छल रही है
 गल रही है भावनाए 
आशाये मन कि ढल रही है 
तुम बसे हो प्यार में ,
 विश्वास  को कर दो हरा

भाव के भावार्थ है 
परमार्थ के कई रूप है 
रंगो  से तू खेल होली 
 क्यों रहा चुप -चुप है ?
रंग से रंगीन हुआ मन 
बिन रंग के जीवन मरा

मंगलवार, 11 मार्च 2014

कीमत

गुणो के पारखी को ही पता होती है कि
सद गुणो की कीमत क्या है?
सज्जनो को ही पता होती है
कि संस्कारो कि कीमत क्या है?
व्यापारी को ही पता होती है
व्यवहार और विश्वसनीयता कि कीमत क्या है?
ज्ञानी की कीमत क्या है?
यह शिक्षित समाज ही जानता है
मूर्ख कहा विद्वता कि पहचान कर पाता है
भोजन कि कीमत सिर्फ भूख ही तो कर पाती है
रेगिस्तान से पूछो कि
 प्यास किसे कहते है?
प्यासे रह कर
 भीषण गर्म लू को लोग कैसे सहते है?
ईमानदारी कि कीमत बेईमान को पता नहीं होती 
ईमानदार ही बता सकता है कि 
ईमानदारी कायम रखने कि कीमत क्या है 
क्योकि उसने ईमानदारी कायम रखने कि कीमत समाज 
परिवार ,परिवेश ,में जो चुकाई है 
बेईमान मानसिकता को पराजित करने के लिए 
जीवन में पग -पग पर कई चोटे जो खाई है 
प्यार कि कीमत क्या और कितनी होती है 
उस व्यक्ति से पूछो जिसने जीवन में ईर्ष्या और
और अपमानो को झेला है 
प्यार का सरोवर कितना मीठा है 
घृणा से लथ -पथ जीवन कितना मैला है
 

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

सखिया करती हास ठिठौली

जिव्हा  खोली कविता बोली 
कानो  में मिश्री  है घोली
जीवन का सूनापन हरती 
भाव  भरी शब्दो की  टोली

प्यार  भरी  भाषाए बोले
जो भी मन में सब कुछ खोले
लगता है इसमें अपनापन 
तट पनघट मुखरित यह हो ले
मादकता छाई है इसमें  
दिवानो कि यह हमजोली

कविता से प्यारा से बंधन 
करुणा से पाया है क्रंदन
वंदन चन्दन नंदन है वन 
सुरभित होता जाता जीवन
हाथो मेहंदी आँगन रोली 
सखिया करती हास ठिठौली 

काव्य सुधा अब क्यों न बरसे 
भाव धरातल नेह को तरसे 
 प्रीत गीत का पीकर प्याला
झुम झुम कर ये मन हरषे
 प्रिय तम मेरी कितनी भोली

 आँख मिचौली करे बड़ बोली

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

विकृतिया हटाओ

चुनावी घोषणा पत्र से, प्रेमिका के वादे 
नेता के आश्वासन से, प्रेमी के इरादे 
दिल के लिए फैसलो से ,होते चुनाव 
उभरता रहा रिश्तो के ,भीतर एक तनाव 
दाम्पत्यिक जीवन में, वैवाहिक बंधन 
अल्पमत सरकारे ,समझौते गठ बंधन 
तनी हुए तलवारे, और बिखरते रिश्ते  
मजबूरियो के रहते ,अरमान है पिसते 
जीवन एक प्रबंधन ,व्यवस्था बताओ 
जन गण मन गायक हो ,विकृतिया हटाओ

सोमवार, 13 जनवरी 2014

कर्म से पहचान है

कर्म ही पूजा है प्यारे ,कर्म पावन ज्ञान है
कर्म ही किस्मत सँवारे ,कर्म
से पहचान है 

कर्म तुझको है पुकारे ,कर्म ही  बलवान है
कर्म से विमुख हुआ क्यों, कर्म से सम्मान है 

कर्मरत रहता निरोगी ,कर्म से मुस्कान है
कर्म कि तू कर परायण, कर्म ही भगवान् है 

कर्म गीता ने कहा है ,कर्म में सब कुछ रहा है
कर्म में  रहता कन्हैया. कर्म से निर्माण है 

कर्म क्यों न कर रहा है ?कर्म से क्यों डर रहा है ?
कर्म से मिलती है सिध्दि ,कर्म में हनुमान है

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज