रविवार, 29 नवंबर 2020

सूरज के है पुत्र रहे


जो मूल से है भाग रहा
वो कैसे मौलिक
तू मूक जन की पीड़ा को 
अपने दम पर लिख

उनको मिलते लक्ष्य नये 
जो आलस से दूर
सूरज के है पुत्र रहे
उर्जा से भरपूर

गुमनामी के साथ जिये
होते न मशहूर
जिनके कर्मठ हाथ रहे
मेहनतकश मजदूर

जिनका अपना कोई नही
उनके गिरधर राम
गोवर्धन को लिए खड़े
लेकर वे ब्रजधाम

ऊँची ऊँची हाँक रहे
कुछ बौने से लोग 
नैतिकता का दम्भ भरे
जिन पर है अभियोग




शनिवार, 28 नवंबर 2020

यह दैविक संयोग

अब सर्दी में आग लगी , जलने लगे अलाव
अपने मन को आंच मिली, होने लगा लगाव

अपनापन था कहा गया, कहा गये वो लोग
होकर वत्सल बात करे,  करते छप्पन भोग

होठो पर मुस्कान नही , निष्ठुर सा स्वभाव
पल पल मन से लुप्त हुआ, अपनेपन का भाव

पैदल चल कर हांफ रहे , काँप रहे है पैर
हृदय को जब रोग मिला, होता पल में ढेर

अपनो से है रोग मिला , अपनो का शोक
अपनेपन का भाव मिला ,यह दैविक संयोग

जो  चलते है नित्य नये , उल्टे सीधे दाँव
उनको मिलते रोज नये , जीवन मे भटकाव

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

गुरु ऊर्जा प्रचण्ड

गुरु चरणों मे धूल नही, गुरु चरणों मे रज
गुरु पिता और मात रहे, गुरु होते अग्रज

गुरु हाथो में फूल नही, होता हर पल दण्ड
गुरु के मानस पुत्र रहे, गुरु ऊर्जा प्रचण्ड

गुरु आस्था में ओज रहा, गुरु दे आशीष रोज
 गुरु शिक्षा और ज्ञान रहे, गुरु होते है खोज

गुरु अंतर्मन ध्यान रहे, गुरु पावन है ज्ञान 
गुरु जी करुणा सींच रहे, हम सिंचित उद्यान

सोमवार, 23 नवंबर 2020

झूठ के है स्कूल

जिनके मन विश्वास नही , वह कैसा आस्तिक
संशय से जो शून्य रहा, ऐसा एक नास्तिक

जगमग जगमग दीप्त रहे ,सच्चाई की आस
अच्छाई में खोट नही , सचमुच का संन्यास

सत के पथ पर शूल मिले ,मिले नही है फूल
झूठ के होते  नाट्य नवीन ,झूठ के है स्कूल

उनका अपना मूल्य रहा, उनके है विश्वास
दृष्टि उनकी बोल रही, वे उनके है खास

उनके अपने तौर तरीके ,अपना है व्यवहार
सुधरा अब न चाल चलन , कैसे करे सुधार

रविवार, 22 नवंबर 2020

मूर्ख बने विद्वान

खट्टे मीठे स्वाद रहे ,खट्टे मीठे बैर 
खतरे में सम्वाद रहे ,अपने होते गैर

बस्ता और स्कूल रहा, बच्चा है गणवेश 
शिक्षा रोटी भूख हुई, शिक्षक है उपदेश

हर घर मे दुकान हुई , शिक्षा कारोबार
जितने स्कूल रोज खुले, उतना बंटाधार

शिक्षा भी बदनाम हुई , शिक्षित बेरोजगार
अपने हक को मांग रहे, खेती न व्यापार

पुस्तक कूड़ेदान मिली, ज्ञान हुआ गुमनाम
ज्ञानी जन तो मूर्ख हूए, मूर्ख बने विद्वान

शनिवार, 21 नवंबर 2020

रहा झूठ पर जोर

कथनी करनी भिन्न रही , रहा झूठ पर जोर
बाहर से कुछ और रहे, भीतर से कुछ और

बदले उनके भाव रहे , बदले है तेवर
घर पर जब है रेड डली , कितने है जेवर

जितना उठता भाव रहा, उतना ऊँचा मूल्य
सस्ती केवल जान रही , मानव पशु समतुल्य

सीता में है सत्य रहा, सत्य पथिक है राम
सच्चाई का कोई नही , केवल है हनुमान

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

यादे रोशनदान

यादे घर का द्वार रही ,यादे रोशनदान
यादो में से झांक रहे खेत गाँव खलिहान

यादे छुक छुक रेल रही , यादे नैरोगेज
यादो में है कैद रही , बाबू जी की मेज

यादो में चल चित्र रहे , याद रहे कुछ मित्र
यादो में है महक रहे, खुशबू चन्दन इत्र

यादो में गुलजार रहा , अपनापन और प्यार
यादो में है दाद मिली , कविता का संसार

बुधवार, 18 नवंबर 2020

करना विषपान

मन्दिर में मूर्ति है
 मूर्ति में प्राण
प्राणों के भीतर तुम
 भर लो मुस्कान

मीरा और सूर ने भी 
छेड़ी थी तान
कान्हा की भक्ति है
 राधा गुमनाम

मन कितना मैला है
 मैला इन्सान
मैले में खेला है
 पप्पू शैतान

धन कितना तुम पा लो
पर गम को सम्हालो
 प्याले में हाला है 
करना विषपान

तुमने जो पाया है 
सब कुछ वह गाया है
काया ही माया है 
जीवन वरदान

शनिवार, 14 नवंबर 2020

क्या करता एक दीप

जग में तम घन घोर रहा, क्या करता एक दीप
जो मर कर भी अमर हुआ , उसका आँगन लीप

महके दीप उजियार यहाँ, चहके खग कलरव
बारूद में मत आग लगा, दीप उत्सव अभिनव

महका हर घर द्वार रहा , चहके खग दल व्योम
दीपोत्सव का सार यही, हो पुलकित हर रोम

जगमग जगमग दीप्त हुआ , दीपो का त्यौहार
दीपो की बारात चली , डोली लिये कहार

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

धन से है तेरस

दीपक  से अनिष्ट टले ,कर लो दीप विधान
प्राणों को चैतन्य करो, दीपक का आव्हान

भीतर से जो दीप्त रहे ,उजले रहे विचार
अंधकार चहु और हटे, मन से हटे विकार

भीतर भीतर शोर रहा , भीतर से है शान्त
भीतर से उद्विग्न हुआ, भीतर से आक्रान्त

भीतर ही अंधियार रहा, भीतर रहा विहान 
भीतर से क्यो भाग रहा, भीतर है भगवान 

धन से धन ही बढ़ा यहाँ, धन बिन जस का तस
धन बिन होती नही दीवाली, धन से है तेरस

रविवार, 8 नवंबर 2020

साहस की दरकार

जैसे जीवन अश्व रहा, धीरज उसकी लगाम
साहस से है धैर्य बड़ा, धैर्यवान बलवान

निष्ठुर सा व्यवहार रहा ,पत्थर से है भाव 
पत्थर सा इन्सान मिला , घावों पर फिर घाव

दिखता था माधुर्य यहाँ , कोमल सा व्यवहार
ऐसे भी थे लोग भले, जो चले गये भव पार

लेखन में वो धार नही , लेखन नही कटार
सिहासन न डोल रहा, साहस की दरकार

शनिवार, 7 नवंबर 2020

ओछे ओछे खेल

बिगड़े उनके बोल रहे , भड़के है जज्बात
जब भी उनसे बात हुई , बिगड़े है हालात

जितने उनके साथ रहे , हम उतने परिचित
उतना ही अलगाव रहा,  उतने ही विचलित

जितने अन्तर्बन्ध रहे ,उतने रहे प्रबंध
दोहरेपन ने छीन लिये, सामाजिक संबंध

रिश्तो पर है गाज गिरी, स्वारथ की विष बैल
हम सबने है खेल लिये , ओछे ओछे खेल


बुधवार, 4 नवंबर 2020

ऐसा क्या सन्यास भला

कैसा यह अभिसार रहा,कैसा रहा प्रणय
हृदय से अनुराग गये, दृष्टिगत अभिनय

मन की तृष्णा वही रही ,रहा हृदय में मोह
ऐसा क्या सन्यास भला, जिसमे विरह बिछोह

मन के भीतर भाव रहे, सीता के लव कुश
खुशिया जिसको नही मिली ,वह फिर भी है खुश

दिल से दिल के नही मिले जितने भी तार
कितने भी वे साथ रहे ,फिर भी है तकरार

ऐसी करवा चौथ रही

स्नेह शून्य हर भाव रहा, नही प्रणय अनुरोध
घूमता फिरता चांद रहा ,ऐसी करवा चौथ

नित होता संग्राम रहा, नित नित रहे विवाद
ऐसे भी कुछ लोग यहाँ, जो इनके अपवाद

सजना को वो याद करे, भरे याद में मांग
सजनी करवा चौथ रही , अदभुत रचती स्वांग

जब तक तेरा प्यार रहा, तब तक यह संसार
मुख में मीठे बोल रहे , मत उगलो अंगार

सोमवार, 2 नवंबर 2020

महके प्राण बसन्त

सूरज बिन प्रभात नही , चंदा बिन न रात
नभ से तारे ताक रहे , उनसे कर लो बात

भीतर भीतर श्वास भरो, छोड़ो श्वास महन्त
पूजा कर फिर ध्यान धरो ,महके प्राण बसन्त

प्राणों का संधान रहा, यौगिक प्राणायाम
सब रोगों से मुक्त करे , प्रतिदिन का व्यायाम

साँसों का आरोह रहा , साँसों का अवरोह
सांसो से क्यो हार रहा, साँसों को तू दोह


रविवार, 1 नवंबर 2020

उतना ही आकाश

उर के भीतर राम रहे , उर के भीतर कृष्ण 
फिर भी किंकर्तव्यविमूढ़ , कितने तेरे प्रश्न

लाली नभ पर फैल रही , सूरज पर रख आस
जितना है विश्वास भरा, उतना ही आकाश 

तुझमे तेरे देव रहे , रख धीरज सदैव
भव में नैय्या तैर रही , नैय्या को तू खैव

जलधि भीतर द्वीप रहे , जलधि में है सीप
जलधि लांघे तीर नही , तू जलधि से सीख

जलधि जल का राज रहा, जलधि रहे जहाज
जलधि से जल खींच रहा , सूरज कल और आज

जलधि का सम्मान करो, पूजो जल को मित्र
जल से निर्मल भाव रहा, तन मन हुए पवित्र

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज