गुरुवार, 23 जुलाई 2020

तेरी परछाई है

भींगे हुए सपनो ने 
ओढ़ी रजाई है
बीती हुई यादों की 
तस्वीर सजाई है
सोई हुई रातो ने 
निदिया लगाई है
गीतों की ये धुन है 
जुगनू की रुन झुन है
सीने में धड़कन है 
तेरी परछाई है

उगता हुआ सूरज है 
डूबता हुआ तारा है 
सींचा गया उपवन 
अब कांटो से हारा है
खुशियों की लालिमा 
किसने चुराई है 
लूटी हुई बस्ती है 
बिखरा अंधियारा है

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

शीश पर नील गगन

शिव से रति है काँप रही ,काँपे देव अनंग
जप तप और पुरुषार्थ कर, शिव का कर ले संग

शिव के चरणों भू मण्डल शीश पर नील गगन
बादल से है गरज रही शिव जी की गर्जन

शिव के शिखर गंग बही ,धरते हर दम ध्यान
शुध्द बने प्रबुध्द बने , योगी और हनुमान

शिव शम्भु को जपा करो बोलो हरदम ओम
पुलकित होती देह रही झंकृत है हर रोम

मन शिव का अनुरक्त हुआ शिव व्यापे इस देह 
शिव जी हर दम बांट रहे निर्मल निश्छल स्नेह


शिव सेवक भी पूज्य रहे , पूजित है परिवार
पल प्रतिपल है पूज्य रहा श्रध्दा का सोमवार




रविवार, 19 जुलाई 2020

काँपे दुष्ट अधम

शिव के हाथों नाद रहा डमरू की डम डम
भूत भावी कल नाच रहे काँपे दुष्ट अधम

शिव ओघड़ के रूप रहे ,लम्बोदर के अज
रूप तो क्षण भंगुर रहा रूप के मद को तज

उनके हाथों काल रहा होता तीक्ष्ण त्रिशूल
सब ग्रंथो का सार यही शिव ही सबके मूल

कालो में महाकाल रहे भोलो के है नाथ
दुष्टों को न क्षम्य करे कमजोरों के साथ

शिव जी पर है बिल्व चढ़े पाये धतुरा भांग
पा लेते  जल दूध दही सादा अनुष्ठान

शिव शम्भू की थाह नही ,वे मानस के हंस
उनसे ही तू प्रीत लगा कट जायेगे दंश

शिव अनुभव के नेत्र रहे अनहद के वे ज्ञान
सच्चाई की ताकत से होगी कब पहचान

जिनका होता कोई नही उनके तो भगवान
शिव निर्धन के मित्र रहे सज्जन के सम्मान


हृदय में न बैर रहे रख कर्मो में आग
शिव के मस्तक नीर बहा गर्दन में है नाग

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

कौड़ी की भी देह नही

ज्यो ज्यो जलती ज्योत रही महका है परिवेश
पावन सुरभित पवन बही अनुभूति होती विशेष

अनुभव से तू जान रहा कर अनुभव का मान 
अनुभवी से सूत्र मिले , बन जाते हर काम

हर दर्पण में झांक रहा ताक रहा है रूप
मद यौवन का गया नही पद कुर्सी की भूख

खुद ही पर है जोर रहा खुद को कर बलवान
खुद में ही जो दोष दिखे उनकी कर पहचान

तुझमे तेरे देव रहे खुद पर कर विश्वास
कौड़ी की भी देह नही बन जाती जब लाश

मंगलवार, 14 जुलाई 2020

लिपटे देह भभूत

जैसा जिसका भाव रहा वैसे है भगवान
शिव ज्योतिर्मय रूप रहे ज्योति का आव्हान

 सोमवार हर वार रहे मन से हटे विकार 
शिव जी के इस मास में सत्य वचन स्वीकार

शिव जी तो अवधूत रहे उनके भैरव भूत
नागों के वे नाथ रहे लिपटे देह भभूत

जीने का आधार रहा शिव जी का परिवार
वे बंधु है मात पिता सबके तारण हार

शिव जी सबके पूज्य रहे क्या दानव क्या देव
भस्मासुर वर मांग गया रावण के महादेव

शिव जी से संतोष मिला पाया है प्रसाद
संकेतो से बात करे शब्द परे सम्वाद

शिव संजीवन बाँट रहे ,करते रोग निदान
मृत्युंजय महामंत्र रहा,जीवन का वरदान

शिव का सत्संकल्प रहा हो सबका कल्याण
सज्जनता के साथ रहे,बीज ,नींव से निर्माण

रविवार, 12 जुलाई 2020

जीवन का संजय

पूजा व्रत से नही मिला कोई भी वरदान
जिसके सच्चे भाव रहे उसका है भगवान

पल पल ढलती रात गई दिन ढलती धूप
प्रतिपल जीवन बीत रहा,धुंधला होता रूप

जीवन से क्यो हार गया विष का करके पान
कितने थे अरमान भरे कैसा था इंसान

जीवन है चल चित्र नही क्यो करता अभिनय
तुझको हर पल देख रहा  जीवन का संजय

तन मन को है बांच रहा जांच रहा कण कण
जैसा दिखता रूप यहां दिखलाता दर्पण

शनिवार, 11 जुलाई 2020

कितने सारे ठूठ

जिसके जितने रंग रहे वह उतना बदरंग
वह वैसा ही बना यहाँ जिसका जैसा संग

कितने थे अंदाज नये कितना फैला झूठ
मैला कुचला एक कमल कितने सारे ठूठ

धन पाकर न तृप्त हुआ ये कैसा अभिशाप 
जीवन का रस चला गया ढोता हर दम पाप

गुणहीन अब गुणवंत बने थे कोरे व्याख्यान
अब कौड़ी के भाव बिकी हीरे की एक खान

उनको तो वरदान मिला ,मिला हमे है शाप
तू अपनी परछाई को नाप सके तो नाप

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

माना तुझको न मिला आसमान है

निरंतर परिश्रम कर देह को तपाया है 
गर्म लू में झुलस कर पसीना बहाया है 
माना तुझको न मिला आसमान है 
पर चिरागों ने हौसला तुझसे पाया है

सिर्फ जीना ही नही पाने कई मुकाम है 
जिंदगी उगती सुबह ढलती हुई शाम है
हर किनारे ने कभी मझदार को पाया है
पला मझदार के बीच  बड़ा  इंसान है

तिमिर को चीर कर है रोशनी जहा आती
प्रतिभाए परिष्कृत हो वहा है चमचमाती
अंधेरे हौसलो को कभी हरा नही सकते
तमस में दीप टोली ही सदा है जगमगाती


तिमिर पीकर जो आया सफलता पाता

निरंतर चलने का नाम जीवन है 
ध्येय से मिलने का नाम जीवन है 
क्यो ? उदास बैठे हो मेरे भाई
परस्पर मिलने का नाम जीवन है

निरन्तर कर्मरत रह जो जी पाया है 
मीठी मुस्कान का पल उसने पाया है
थका है क्यो ? राही इस मुकाम पर 
पूरा आसमान पैरो तले आया है 

कठिन है राह पर चुप रहा नही जाता
 रहा भीतर है जो दर्द सहा नही जाता
झूठे सपनो को हम नही जिया करते है
तिमिर पीकर जो आया सफलता पाता

निरन्तर चीर जिसने बढ़ाया है 
कान्हा चित्त में मेरे आया है 
रही जहां भी कही करुणा है 
मैंने घनश्याम को वही पाया है


सोमवार, 6 जुलाई 2020

स्वदेशी से जीत गया मेरा वीर जवान

धोखे से हर युध्द लड़ा ,अब आये दुर्दिन
स्वदेशी से हार गया, चीनी ड्रैगन जिन्न

सीमाए अब रिक्त हुई लौट गया शैतान
स्वदेशी से जीत गया मेरा वीर जवान

स्वदेशी का मंत्र चला,दुश्मन की न खैर
सीमाए सुनसान हुई गरज रहा है शेर

सीमा से है भाग खड़ा उखड़ गये है टेंट
स्वदेशी से हांफ रही ,चीनी तोपे टैंक

स्वदेशी से शुध्द हुए ,पाये हमने बुध्द
हिंसक तेवर चला गया टला अभी है युध्द

एक देश परतंत्र  रहा एक देश गणतंत्र
एकमेव जब राष्ट्र रहा स्वदेशी का मन्त्र

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज