बुधवार, 20 नवंबर 2013

मीलो की दूरिया

मीलो की  दूरिया 
मिलने  कि मजबूरिया  हो सकती है 
दिलो में दूरिया पैदा  नहीं कर सकती 
लम्बे और दीर्घ अवधि के अंतराल 
समय तो तय कर सकते  
आत्मीयता  कम नहीं कर सकते 
दुश्मन कितना भी दुष्ट हो 
उसका प्रहार कितना भी पुष्ट  हो 
संकल्प का बल हिला नहीं सकते 
राहे कितनी भी वीरान हो
  सफ़र में कितनी भी थकान हो 
जीत जाता अंतत साहस है 
मृत्यु के क्षणो में भी व्यक्ति के पास होती 
जीने कि जिजीविषा 
रहती जीवन कि आस है 
जग में कितना भी कोलाहल हो 
बिखरा  कितना भी हलाहल हो 
लग जाता योगी का ध्यान है 
जीवन में कुछ जुड़ता जाए 
अपनी जड़ो से जो जुड़ जाए 
व्यक्ति होता वह महान है


शनिवार, 16 नवंबर 2013

क्या कोई निवारण है ?

मनुष्य और जीव -जंतु में कितना फर्क है 
जीव जंतु अपने आकार और प्रकार से 
तरह तरह की सूचनाये देते है 
सर्प  अपने आकार से डसने कि सूचना 
गिध्द अपने रूप से नोचने कि सूचना देता है 
सिंह अपनी चाल से और भाव भंगिमा से 
आक्रमण कि सूचना देता है 
परन्तु मनुष्य का  दोगलापन 
उसके आचरण का दोहरापन 
कोई सूचना नहीं देता 
 सूचना दिए बिना अचानक अप्रत्याशित आघात करता है 
दुष्ट व्यक्ति अकारण विश्वास घात करता है 
डसता  है  धीमे जहर से पर डसने का कोई कारण नहीं है 
दोगलापन उसे डसने का कारण देता है 
कब नोचेगा ?कितना नोचेगा ?क्यों नोचेगा ?
गिध्द की एक सीमा है 
पशु के साथ उसकी  प्रकृति है 
प्राकृतिक गरिमा है 
पर इंसान ने अपनों को  ही बुरी तरह नोंचा है 
सपनो को तोड़ा है
जख्मो को बार -बार खरोंचा है 
समाज और परिवार में ऐसे कई उदाहरण है 
दोगलेपन का भी क्या कोई निवारण है ?

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज