कोई भी उपचार नहीं
न कोई है तथ्य
इस युग मे हैं पस्त हुए
अहिंसा और सत्य
नियति से अब
कौन लड़े
लिखे लेख को
कौन मिटाय
धीरे धीरे बीत रहे
जीवन के अध्याय
दूजे की हर बात रखी
अपना सब कुछ खोय
अपना ही एक दोष रहा
दूजा न लगे कोय
जिसके उर व्यापार रहा
रहा नही हैं स्नेह
हर पल में हैं स्वार्थ वहा
मृत रिश्तों की देह
पैसे की ही भूख रही
पैसे की है प्यास
जाने का अफ़सोस नहीं
कुछ पाने की आस
कर्मों का ही बोझ रहा
कितना उन्हें उठाए
निकम्मे की धूम रही
सब है उसे बचाए
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