शनिवार, 11 दिसंबर 2010

roopvati


गोरा तेरा रंग है गदराया हर अंग
रूपवती के रूप पर है ब्रहम्मा जी दंग 

ईर्ष्या नफरत से तपे मेरे मन के पाव
ऐसे में ये प्रीत बनी ठंडी-ठंडी छांव 
नर्म-नर्म कलाईया ,नाजुक गोरे हाथ 
धवल चन्द्रमा चाँदनी ,तेरे रूप के साथ

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज