कच्ची है पर सच्ची रहे ,फैली रेलम पेल है
झाड़ और झुरमुट खड़े है ,टेडी मेडी मेढ़ है
आती जाती बैल गाडी ,हिलते डुलते पेड़ है
माटी के बनते खिलौने ,काठ बनती रेल है
हुई अकड़ती एक ककड़ी ,नन्हा सा एक झाड़ है
देशी बोली में ठिठोली ,अम्मा देती लाड़ है
हल को धरता है हलधर, हीन हिनाते बैल है
गाँवों में होता है जीवन ,सीधे सच्चे गाँव है
खेतो से चल कर निकलते ,खुर दरे से पाँव है
खेती में होता परिश्रम ,होती नहीं वह खेल है
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