गुरुवार, 29 नवंबर 2018

ठहरा मन विश्वास

गहरा गहरा जल हुआ गहरे होते रंग

ज्यो ज्यो पाई गहराई पाई नई उमंग


गहराई को पाइये गहरा चिंतन होय

उथलेपन में जो रहा मूंगा मोती खोय


गहरा ठहरा जल हुआ ठहरा मन विश्वास

ठहरी मन की आरजू पाई है नव आस


गहराई में खोज मिली गहरे उठी दीवार

गहराई न जाइये गहरी गम की मार


ऊंचाई से उतर रहे लेकर चिंतन वेद

जीवन तो समझाईये गहरे है मतभेद


3 टिप्‍पणियां:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज