मंगलवार, 26 मई 2020

आधुनिक है चित्र

गहरी मन की प्रीत रही , मिलने को बैचेन
सूरज से है सांझ मिली, पल पल ढलती रैन

चलने को न साथ मिला,राहे बिल्कुल शांत
बिन मांगे ही मिला यहाँ, जीवन मे एकांत

आड़ी तिरछी रेख खींची, घुले रंग में इत्र
आधुनिकता साथ रही,  आधुनिक है चित्र

सडको पर न धूल मिली, निर्मल नील आकाश
निर्मल नदिया नीर हुआ, जीवन को अवकाश

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज