रविवार, 19 जनवरी 2025

ब्रह्मा विष्णु महेश

जिसका कुछ मंतव्य रहा
उसका है गंतव्य
वो पाए अधिकार यहां 
जिसके कुछ कर्तव्य

प्राणों पर है बोझ रहा
जो कुछ कर तत्काल
जिसका होता कोई नहीं
उसके तो महाकाल

जीवन जिसका शेष नहीं 
उसका यह परिवेश
उसका होता प्रिय सखा
ब्रह्मा विष्णु महेश

गंगा यमुना यही बही
रहता यही प्रयाग
तीर्थों से उसे पुण्य मिला
हृदय जो निष्पाप 


शनिवार, 18 जनवरी 2025

उनके रहे विचार

पिता जी ने कहा नहीं 
हृदय का कोई दुख
वे तो सबको बाँट गए
जीवन का हर सुख

पिता जी चुपचाप रहे 
पिता जी है मौन 
जीते जी आदर्श रखे
जीवन का हर कोण

पिता जी कोई देह नहीं
है वैचारिक तार
दैहिक थे जो चले गए
उनके रहे विचार

पिता जी परमार्थ रखे
पिता है यथार्थ
वे तो मेरे प्रिय सखे 
मैं हूं केवल पार्थ


ब्रह्मा विष्णु महेश

जिसका कुछ मंतव्य रहा उसका है गंतव्य वो पाए अधिकार यहां  जिसके कुछ कर्तव्य प्राणों पर है बोझ रहा जो कुछ कर तत्काल जिसका होता कोई नहीं उसके तो...