जिसका कुछ मंतव्य रहा
उसका है गंतव्य
वो पाए अधिकार यहां
जिसके कुछ कर्तव्य
प्राणों पर है बोझ रहा
जो कुछ कर तत्काल
जिसका होता कोई नहीं
उसके तो महाकाल
जीवन जिसका शेष नहीं
उसका यह परिवेश
उसका होता प्रिय सखा
ब्रह्मा विष्णु महेश
गंगा यमुना यही बही
रहता यही प्रयाग
तीर्थों से उसे पुण्य मिला
हृदय जो निष्पाप
ह्रदय की शुद्धता ही उसे महाकाल का प्रिय बनाती है, सुंदर भाव
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