पिता जी ने कहा नहीं
हृदय का कोई दुख
वे तो सबको बाँट गए
जीवन का हर सुख
पिता जी चुपचाप रहे
पिता जी है मौन
जीते जी आदर्श रखे
जीवन का हर कोण
पिता जी कोई देह नहीं
है वैचारिक तार
दैहिक थे जो चले गए
उनके रहे विचार
पिता जी परमार्थ रखे
पिता है यथार्थ
वे तो मेरे प्रिय सखे
मैं हूं केवल पार्थ
पिता को बखूबी लिखा ... भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदय
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
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