व्यथा मौन है डली संलाखे



सूनी आँखे ,झुलसी पाँखे,
आशाओ की टूट गई शांखे
क्षण है उदासा कण -कण प्यासा व्यथा मौन है डली संलाखे

वक्त सख्त है मौसम छलिया
झुलस गई खुशियों की कलिया
कठिन है राहे बेबस चाहे भूल-भुलय्या वाली गलिया
रिश्तो का मैला सा आँचल अनुभुतिया कड़वी चान्खे
.......... व्यथा मौन है डली संलाखे
थका -हारा मारा है यौवन
उजड़ गया आस्था का उपवन
अन्धकार ही अन्धकार है टुटा फूटा दिल का दर्पण
मनी दिवाली होली खेली रह गई मन में फिर भी राते
.......... व्यथा मौन है डली संलाखे
सूरत भोली मीठी बोली
अपने मन की बात न खोली
प्रेम शब्द चुभता है मन को जैसे बैरी बैल कंटीली
हुई दोस्ती सौदेबाजी धोखो पर टिकती बुनियादे
......... व्यथा मौन है डली संलाखे

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज