गुरुवार, 28 जून 2012

कर्म ही आराधना है

कर्म तेरी साधना है,कर्म ही आराधना है
कर्म मे निहीत रही है ,देवत्व की अवधारणा है

कर्म राम कर्म श्याम कर्म होते चार धाम
कर्म बिन होती नही है,मोक्ष की उपधारणा है

 कर्म धर्म का है पूरक ,कर्महीन जड़मति मूरख
कर्महीन जो भी रहा है,मिलती रही प्रताडना है

कर्म मे कर्तव्य रहता ,कर्तव्य ही मंतव्य कहता
मंतव्य से गंतव्य तक की ,चिर प्रतिक्षित धारणा है


जो कर्म रथ लेकर चले है  सूर्य से हुए उजले  है
कृष्ण से हनुमान तक की मिलती रही शुभकामना है

कर्म का स्वामी रवि है,कर्मरत रहता कवि है
कर्मयोगी है निरोगी,योगीश शिव की साधना है

कर्म में ही  धर्म रहता  ,धर्म ही तो कर्म कहता
कर्म से मत कर पलायन ,गीता का दामन थामना है
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज