स्नेह जब ममत्व का रूप धारण करता है
तो ममता कहलाता है
स्नेह जब दया अौर अार्द्रता सौहार्द्रता का रूप धारण करता है
तो करूणा कहलाता है
स्नेह को जब पित्रत्व का अाकाश मिलता है
तो अाश्रयदाता बन जाता है
स्नेह को जब सम्वेदना का अाभास मिलता है
तो गीत गजल साहित्यिक अाचार कालजयी विचार बन जाता है
स्नेह किसी अजनबी से हो जाता है तो प्रीत प्यार बन जाता है
ऐेसे प्रेम से व्यक्तित्व का निखार पा जाता है
राधा से श्रीक्रष्ण से स्नेह अध्यात्मिक ऊॅचाईया पा जाता है
माता के स्नेहिल स्पर्श पाकर शिशु अाहार दुलार पा जाता है
पिता का स्नेहाशीष पाकर पुत्र सारा संसार पा जाता है
बुजुर्गो की स्नेहिल स्पर्श की हौसलो को उडान प्रदान करता है
इसलिये स्नेह के अलग -अलग भाव है
स्नेह सिर्फ स्नेह नही अात्मा का अात्मा से लगाव है
स्नेह शून्य जीवन मे अभाव ही अभाव है
जहाॅ स्नेह है वहा समभाव है
स्नेह विहीन समबन्धो रहता नही सदभाव है
स्नेह के कई रूप है स्नेह की कही छाॅव है तो कही धूप है
स्नेह कही बोलता है तो कानो मे मिश्री घोलता है
स्नेह कही चुप -चुप रहता है
संकेतो अौर अनुभूतियो अाॅखो से साॅसो से बोलता है
मौन स्नेह के की भाषा अनोखी है
स्नेहिल स्पन्दन की सरिता क्यो सूखी है
isneh ko pribhasit krne wali aapki vyakhya bhut acchi lgi
जवाब देंहटाएं