मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

नारी और नदि का अस्तित्व

नदि नदि नही नारी है नारी नारी नही नदि है
नदि और नारी सब समझती है सब जानती है
वह अपने भीतर की कमजोरिया और ताकत को अच्छी तरह पहचानती है
जीवन मे कौन है अच्छा और कौन है बुरा
कौन है पूर्णता को लिये हुये 
और है अादमी अधुरा
नदि ने अपना प्रदूषण खुद धोया है
घनघोर बारिश के भीतर किया है स्नान 
अपना आँचल भींगोया है
पर इन्सान ने अपनी गलतियो को नही सुधारा 
और फिर खूब रोया है
नदि और नारी को कोई कितना भी अपवित्र कर दे
 उसके पास पावनता के साधन है
और पुरुषो के पास उपयोग है उपभोग है 
शोषण की मानसिकता है ,भोग के संसाधन है
इसलिये नदि और नारि की सामर्थ्य को कोई नही समझ पाया है
नारी ने नदि बन कर और नदि ने बह- बह कर अपना अस्तित्व बचाया है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज