भक्ति में रहता समर्पण और त्याग में संन्यास है
भावना का यह सरोवर ,नहीं वाक्य का विन्यास है
रहता निश्छल ह्रदय में ,भाव से अभिभूत है
आत्मा होती बैरागन ,मन हुआ अवधूत है
आस्था है चिर सनातन ,भक्त का विश्वास है
जानता है मानता है ,पर कहा वह सुख है
राधा जी रूठी हुई है ,हर ख़ुशी में दुःख है
भक्ति में शक्ति है रहती और प्रेम में उल्लास है
राम से होती रामायण, श्रीकृष्ण से संगीत है
प्यार कि हर हार में ही ,होती ह्रदय की जीत है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें