बजता डमरू महाकाल का
नाच रहे नंदी भैरव
नर से होते नारायण है
अर्जुन के केशव माधव
ऊँचे पर्वत गहरी नदिया
नभ पर पंछी की कलरव
हलचल होती मन के भीतर
सृजन स्वर उपजे अभिनव
झरते झरने सात समंदर
गहरे जीवन के अनुभव
अंधड़ ,पतझड़ ,बारिश की झड़,
मौसम होते असंभव
ताल सरोवर भूमि उर्वर
गिरता उठता है शैशव
धर्म कर्म की बात पुरानी
नया पुराना होता भव
जीवन से होता परिचय तो
जीवन की लीला है नव
जीवन ले ले कुदरत खेले
विपदायें भीषण तांडव
कटते जंगल होते दंगल
मानव बनता है दानव
विस्फोटक की खेप पुरानी
क्षत विक्षत बिखरे है शव
सामान्य दानव नहीं, रक्त-बीज बन गया है आज तो !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंउत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद
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