भाव सृजन की धरा है
लेखनी मन में डुबोई
आत्मीयता ह्रदय में
प्यार की आशा संजोई
चित्त में चित्तचोर रहता
शब्दहीन संवाद करता
श्याम ने पाई न राधा
बाधाये जाने न कोई
हाथो में मेहंदी रची ज्यो
भक्ति प्रीती में भिंगोई
श्याम की बंशी बजी तो
मीरा राधा सी है खोई
गंध और सुगंध पाने
भवरे होते है दीवाने
पंख सपनो से जुड़े है
पुष्प से माला पिरोई
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