झाँकते हर और चेहरे
ताकते प्रतिबिम्ब है
रास्ते जल से भरे है
दृश्य होने भिन्न है
दिखती है दिव्यता तो
प्राची की अरुणाई में
ओज और ऊर्जा पवन में
उम्र की तरुणाई में
रह गई परछाईया है
वक्त के पदचिन्ह है
दृष्टिगत होते क्षितिज में
कल्पना के रंग है
उम्र भर उड़ती रही है
लक्ष्य की पतंग है
वृहद व्यथा की कथा है
मन क्यों होता खिन्न है
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