गण राज्यो से देश बना , गणपति है भगवान
हर कण में यहां देव रहे ,दिव्य साधना ध्यान
हर कण में यहां देव रहे ,दिव्य साधना ध्यान
गुणों से ही पूज्य रहे, अवगुण से अपमान
गुणित होता चला गया ,गणपति का वरदान
गुणित होता चला गया ,गणपति का वरदान
गण नायक ने चित्त हरा , हारा है अभिमान
जीवन का सौंदर्य रही, इक निश्छल मुस्कान
जीवन का सौंदर्य रही, इक निश्छल मुस्कान
नायक से नेतृत्व रहा ,गायन से गुणगान
मिट्टी के गणराज कहे ,मिट्टी का इंसान
मिट्टी के गणराज कहे ,मिट्टी का इंसान
बाधाओ का जोर नही, बढ़े पराक्रम ओर
साधक को मिल जाएगा ,सुख सागर का छोर
साधक को मिल जाएगा ,सुख सागर का छोर
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