गुरुवार, 4 जून 2020

मानवता की लाश

धन उसके ही पास रहा , जिसका उन्नत मन 
मन तो इक विश्वास रहा , मन तो है  दर्पण

रिश्तों से वह शून्य रहा , कटुता जिसके पास
मानव का मन टूट रहा , टूट रहा विश्वास

मानवता है ढूँढ रही ,कहा है अपनापन
शब्दो से है बात बनी, शब्दो से अन बन

धरती करुणा भूल रही , विचलित है आकाश
दिखती चारो और रही , मानवता की लाश




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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज