धन उसके ही पास रहा , जिसका उन्नत मन
मन तो इक विश्वास रहा , मन तो है दर्पण
रिश्तों से वह शून्य रहा , कटुता जिसके पास
मानव का मन टूट रहा , टूट रहा विश्वास
मानवता है ढूँढ रही ,कहा है अपनापन
शब्दो से है बात बनी, शब्दो से अन बन
धरती करुणा भूल रही , विचलित है आकाश
दिखती चारो और रही , मानवता की लाश
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