रविवार, 12 जुलाई 2020

जीवन का संजय

पूजा व्रत से नही मिला कोई भी वरदान
जिसके सच्चे भाव रहे उसका है भगवान

पल पल ढलती रात गई दिन ढलती धूप
प्रतिपल जीवन बीत रहा,धुंधला होता रूप

जीवन से क्यो हार गया विष का करके पान
कितने थे अरमान भरे कैसा था इंसान

जीवन है चल चित्र नही क्यो करता अभिनय
तुझको हर पल देख रहा  जीवन का संजय

तन मन को है बांच रहा जांच रहा कण कण
जैसा दिखता रूप यहां दिखलाता दर्पण

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज