रविवार, 23 अक्टूबर 2022

घर का आँगन लीप

पौरुष से पुरुषार्थ हुआ
पौरुष है पतवार 
जिनके भीतर  ओज  रहा 
वे  तट के  उस  पार 

सच्चाई  की  कोख  पली 
भीतर  की  मुस्कान 
अंतर्मन  में  दीप जला
कर  उजियारा  दान 

अंधियारे  की  रात  नहीं 
झिलमिल  है  आकाश 
तू  कर्मों  से  प्रीत  दिखा  
होगा  दिव्य  प्रकाश 

अन्तर  से  चित्कार  उठी 
मिला  सृजन  नवनीत 
गीतों  की  झनकार रही 
हर पल छलकी प्रीत 

जीवन  मे  धन  धान्य  रहे 
जले  स्वास्थ्य  के  दीप
दीपो से  य़ह  पर्व सजे 
घर  आँगन  को  लीप 

बाहर  कितना  शोर  रहा 
भीतर  रहा  तिमिर 
तू  इक  ऐसा  दीप जला 
तम को  जो  दे  चीर 


4 टिप्‍पणियां:

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