पौरुष है पतवार
जिनके भीतर ओज रहा
वे तट के उस पार
सच्चाई की कोख पली
भीतर की मुस्कान
अंतर्मन में दीप जला
कर उजियारा दान
अंधियारे की रात नहीं
झिलमिल है आकाश
तू कर्मों से प्रीत दिखा
होगा दिव्य प्रकाश
अन्तर से चित्कार उठी
मिला सृजन नवनीत
गीतों की झनकार रही
हर पल छलकी प्रीत
जीवन मे धन धान्य रहे
जले स्वास्थ्य के दीप
दीपो से य़ह पर्व सजे
घर आँगन को लीप
बाहर कितना शोर रहा
भीतर रहा तिमिर
तू इक ऐसा दीप जला
तम को जो दे चीर
बहुत सुंदर सृजन!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबाहर कितना शोर रहा
जवाब देंहटाएंभीतर रहा तिमिर
तू इक ऐसा दीप जला
तम को जो दे चीर
बहुत खूब !