सोमवार, 8 मई 2023

रच रही नव व्याकरण


चाँद  तारे  से  गगन  है 
   दीपिका  से  है किरण 
 दीपिका जब न जली तो
चंद्र  करता तम हरण 

जब  अंधेरा  हो  रहा  हो  
जगत  सारा  सो रहा  हो  
चांदनी  चन्दा  से  मिलकर
  रच  रही  नव व्याकरण 

चंद्रमा  घटता  है  बढ़ता 
फिर  भी  न होता  क्षरण 
बिखरती  चौसठ कलाये  
सौंदर्य पथ  का  है वरण 

 
दीप  कोई  जल  रहा  हो 
तिमिर  पल पल  गल रहा  हो 
रोशनी  के  गीत  गा  के 
कर्म   पाता  है  शरण 

( चैत्र  माह  की  तीज  पर  उदित  चंद्रमा  के  लिये  गये  चित्र  पर  रचित  रचना)


1 टिप्पणी:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज