किया जाए अन्त
स्नेह सद्भावना को
करे हम जीवन्त
टूट गई आशाओं को
एक विश्वास देकर
नई सम्भावना का
ले आए वसन्त
खुली हुई खिड़की
खुला हुआ नभ है
लिखी नव इबारत
जीवन तेरा तब है
कही दिखते पलकों पे
करुणा के आंसू
ऊंची हुईं मीनारें
नहीं दिखता रब है
गीतों की धारा ने है सौंदर्य गाया गजल डूबी गम में छंद मुस्कराया कभी व्यंग करते दोहे रहे है साहित्यिक सुरों से सृजन खिलखिलाया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें